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अमेरिका की 'चिंता'!

अरविंद केजरीवाल पर जो भी आरोप लगे हैं, उनसे संबंधित तथ्य भारत की जांच एजेंसी और न्यायालय के सामने हैं

अमेरिका की 'चिंता'!
क्या मि. मैथ्यू मिलर भूल गए कि उनका देश इन आदर्शों का पालन करने में कितना फिसड्डी है?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के संबंध में अमेरिका की टिप्पणी कि वह 'निष्पक्ष, पारदर्शी, समयबद्ध कानूनी प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करता है' और उसे नहीं लगता कि किसी को इस पर आपत्ति होनी चाहिए’, पर यही कहना उचित होगा कि वह 'न तो तीन में और न तेरह में', इसलिए भारत के आंतरिक मामलों को लेकर ऐसे 'प्रोत्साहन' देना बंद करे। अरविंद केजरीवाल पर जो भी आरोप लगे हैं, उनसे संबंधित तथ्य भारत की जांच एजेंसी और न्यायालय के सामने हैं। यह जिस स्तर का मामला है, उस पर किसी को भी अनावश्यक बयानबाजी से दूर रहना चाहिए। जब मामले में सबूत जुटाए जा रहे हैं और न्यायालय सुनवाई कर रहा है तो अमेरिका को क्या जरूरत है कि वह 'दाल-भात में मूसलचंद' बने? इसमें न्याय भारत के न्यायालय को करना है। अगर केजरीवाल के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले और न्यायालय ने उन्हें सही माना तो वही निर्णय आएगा, जो ऐसे किसी भी मामले में आना चाहिए। अगर सबूत नहीं मिले और केजरीवाल इस प्रकरण से जुड़े नहीं पाए गए तो निश्चित रूप से न्यायालय राहत देगा। क्या देश में ऐसे मामलों की कमी है, जिनमें जांच एजेंसियों के दावों को न्यायालय ने खारिज करते हुए आरोपियों को रिहा न किया हो? बहुत लोग रिहा हुए हैं। कौन दोषी है और कौन निर्दोष है, यह निर्णय भारत के न्यायालय को करना है, न कि व्हाइट हाउस को। इसलिए अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर, जो कहते हैं कि 'हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी सहित इन कार्रवाइयों पर बारीकी से नजर रखना जारी रखेंगे', भारत के किसी भी नागरिक से जुड़े कानूनी मामले की चिंता करना छोड़ें और अपने देश से जुड़े मामलों पर ध्यान दें।

यह भी दिलचस्प है कि भारत को निष्पक्ष, पारदर्शी, समयबद्ध कानूनी प्रक्रियाओं और मानवाधिकारों एवं सहिष्णुता पर वे देश ज्यादा उपदेश देते हैं, जिनका खुद का रिकॉर्ड इन मामलों में बेहद खराब रहा है। क्या मि. मैथ्यू मिलर भूल गए कि उनका देश इन आदर्शों का पालन करने में कितना फिसड्डी है? अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ कथित युद्ध के नाम पर कितने निर्दोष लोगों पर बम बरसाए थे? मैथ्यू मिलर पिछले ढाई दशकों का ही इतिहास पढ़ लेंगे तो जान जाएंगे कि उनके देश ने कई बार तानाशाहों का समर्थन किया है। अमेरिका ने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ की सहमति से कितने ही निर्दोष अफगानों को आतंकवादी घोषित कर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उन्हें वर्षों तक काल-कोठरी में बंद रखा था। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब किसी दुकानदार, रिक्शाचालक, सब्जी विक्रेता ... को आतंकवाद के आरोपों में धर लिया गया और उन्हें जेल में डालकर खूब प्रताड़ित किया गया। वर्षों बाद जब वे लोग छूटे तो उनकी कहानियां सामने आईं। बेहतर होता कि अमेरिकी अधिकारी ऐसी ही चिंता उन लोगों की भी करते। उनके मामलों में निष्पक्ष, पारदर्शी, समयबद्ध कानूनी प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करते। निश्चित रूप से इस पर किसी को आपत्ति नहीं होती। अमेरिका को चाहिए कि वह अन्य देशों की राजनीति और कानूनी मामलों में दिलचस्पी लेने के बजाय अपने यहां होने वाले आगामी राष्ट्रपति चुनावों की फिक्र करे। इस समय उसकी जनता जो बाइडेन से मायूस है। उन्होंने जो बड़े-बड़े वादे किए थे, वे हवाई बातें साबित हुए। ट्रंप की उम्मीदवारी पर अनिश्चितता के बादल मंडराते-छंटते जा रहे हैं, लेकिन यह भी आशंका जताई जा रही है कि उनके आने से अमेरिका में सामाजिक विभाजन और गहरा हो जाएगा। इसके नतीजे में हिंसा भी भड़क सकती है। उम्मीद है कि अमेरिकी अधिकारी अपने यहां 'निष्पक्षता, पारदर्शिता और समयबद्ध कानूनी प्रक्रियाओं' का होना सुनिश्चित करेंगे। इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

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