अमेरिका की 'चिंता'

कथित महाशक्ति का राज-काज संभालने वाले लोग सोशल मीडिया पर लगाए जा रहे कयासों पर विश्वास कर रहे हैं!

वह इस बात का ध्यान रखे कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए), 2019 के बारे में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर के बयान से संदेह पैदा होता है कि कथित महाशक्ति का राज-काज संभालने वाले लोग इस अधिनियम की मूल प्रति पढ़ने के बजाय सोशल मीडिया पर लगाए जा रहे कयासों पर विश्वास कर रहे हैं। न केवल सोशल मीडिया, बल्कि कई देशों में मुख्यधारा का मीडिया सीएए को लेकर भ्रमित है। इसमें पाकिस्तानी मीडिया सबसे आगे है। उसे तो इस बात पर लज्जित होना चाहिए कि उसके मुल्क की सरकार अपने अल्पसंख्यकों के जीवन और सम्मान की सुरक्षा करने में विफल रही है, इसीलिए भारत सरकार को सीएए लागू करना पड़ा। यह भी संदेह होता है कि आजकल अमेरिकी विदेश मंत्रालय के लोग अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में पाकिस्तानी मीडिया की बेसिर-पैर की खबरें ही बांच रहे हैं। सीएए के संबंध में अमेरिका का बयान क्या कहता है? यही कि वह चिंतित है और क्रियान्वयन पर नजर रख रहा है! बहुत अच्छी बात है। खूब नजर रखे। बल्कि उसके लिए एक विनम्र सुझाव है कि भारत के सीएए के विरोध में वह खुद ऐसा कानून लागू कर दे, जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के 100 प्रतिशत लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान हो! क्या राष्ट्रपति जो बाइडेन यह हिम्मत दिखा पाएंगे? अमेरिका के पास न तो जगह की कमी है और न ही संसाधनों का अकाल है। फिर किस बात की देरी? बाइडेन महोदय आज ही यह घोषणा कर दें। और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के लिए ही क्यों, मैक्सिको, चिली, ब्राजील, चीन ... के लिए भी नागरिकता का पिटारा खोल दे। इन दिनों रूस-यूक्रेन युद्ध हो रहा है। अमेरिका को चाहिए कि वह मानवाधिकार, करुणा और भाईचारे के नाम पर इन दोनों देशों के लोगों के लिए नागरिकता प्रमाणपत्र जारी करे। बस, लोगों को इतना करना हो कि वे नजदीकी अमेरिकी दूतावास जाएं, वहां अपना नाम लिखवाएं और तुरंत नागरिकता प्रमाणपत्र ले आएं। इससे अमेरिकी राष्ट्रपति की जो जय-जयकार होगी, वह सामान्य लोगों की तो कल्पना से परे है।

अमेरिका को ऐसी ही दरियादिली सोमालिया के लिए दिखानी चाहिए। वहां काम-धंधे की कमी है। अर्थव्यवस्था ठीक तरह से नहीं चल रही है, इसलिए कई लोग समुद्री डाकू बन गए। इस काम में भारी जोखिम होता है। अगर समुद्री तूफान या लहरों की चपेट में आ गए तो नौका जाएगी अथाह पानी में और डाकू जाएगा ऊपर! ऐसी ही परिस्थिति तब आ सकती है, जब डाकुओं का सामना किसी शक्तिशाली नौसेना से हो जाए। इसलिए अमेरिकी सरकार को चाहिए कि वह बड़ा दिल दिखाए। इन सब लोगों को तुरंत नागरिकता देने की घोषणा करे। इतनेभर से ही काम नहीं चलने वाला! इन्हें नौकरियां भी दे, अपनी नौसेना में बड़े-बड़े ओहदों पर तैनात कर दे। बस, वह इस बात का ध्यान रखे कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है। हमें इसे किस तरह लागू करना है, यह भारतीय संसद तय करेगी। अमेरिका, पाकिस्तान और दुनिया के किसी भी देश को इस पर चिंतित होने की और किसी भी तरह का उपदेश देने की कोई जरूरत नहीं है। आज बहुत लोगों / देशों को सीएए पर तो 'चिंता' हो रही है, लेकिन उन्हें उस वक्त 'चिंता' नहीं होती, जब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को सताया जाता है, उनकी बहन-बेटियों का अपहरण कर जबरन धर्मांतरण किया जाता है। भारत में नवरात्र और अन्य शुभ अवसरों पर कुंवारी कन्याओं के चरण धोए जाते हैं, उन्हें दुर्गा का स्वरूप मानकर उनका पूजन किया जाता है। उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। जब कोई शुभ कार्य करना हो तो उनके हाथों से करवाया जाता है। लोग अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के नाम बेटियों के नाम पर रखते हैं, क्योंकि कन्या को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। दूसरी ओर, पाकिस्तान में कट्टरपंथ के उन्माद में डूबे लोग मासूम कन्याओं का अपहरण करते हैं, जबरन धर्मांतरण कराते हैं, दुष्कर्म करते हैं ...। यह अक्षम्य पाप है! संसार ये शब्द याद रखे- कन्याओं पर यह अत्याचार एक दिन पाकिस्तान को महाविनाश की ओर लेकर जाएगा। अगर अफगानिस्तान और बांग्लादेश ने समय रहते सबक नहीं लिया, तो इन देशों का अंजाम भी पाकिस्तान जैसा ही होगा।

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