ये भी आम आदमी

केजरीवाल का यह कहना सत्य नहीं है कि 'सीएए लागू होने से देशभर में भारी संख्या में पड़ोसी देशों से घुसपैठिए आ जाएंगे'

केजरीवाल तो खुद धरना-प्रदर्शन करते हुए राजनीति में आए थे

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 'जिन शब्दों' का प्रयोग करते हुए सीएए के खिलाफ मोर्चा खोला है, उनमें सत्य का अभाव दिखाई देता है। वे आम आदमी के हितों की बात करते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से जो हिंदू, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी अपनी जान बचाकर यहां आए हैं, वे भी आम आदमी ही हैं। एक ओर जहां सीएए के अधिसूचित होने की खुशी में ये लोग उत्सव मना रहे हैं, वहीं केजरीवाल इनके लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, जो बतौर मुख्यमंत्री उन्हें नहीं करना चाहिए था। इसके बाद इन लोगों ने केजरीवाल के आवास के बाहर धरना-प्रदर्शन किया। निस्संदेह ऐसे प्रदर्शन में सबको 'जोश और होश', दोनों का ध्यान रखना चाहिए। केजरीवाल तो खुद धरना-प्रदर्शन करते हुए राजनीति में आए थे। बेहतर होता कि वे सीएए को लेकर तमाम मतभेदों के बावजूद इन लोगों से मिलते, इनकी बात सुनते। इससे इनकी पीड़ा कुछ कम हो जाती। केजरीवाल का यह कहना कि 'सीएए के बाद ये पाकिस्तानी पूरे देश में फैल जाएंगे और इसी तरह हमारे ही मुल्क के लोगों को हड़काएंगे और हुड़दंग करेंगे', हास्यास्पद है। पहली बात तो यह कि इन पर पाकिस्तानी होने का ठप्पा हटाने के लिए सीएए लाया गया है। ये तो पाकिस्तान का मुंह भी नहीं देखना चाहते। इन्हें नागरिकता मिलने के बाद पाकिस्तान से कोई रिश्ता नहीं रहेगा। जहां तक पूरे देश में 'हुड़दंग' मचाने की बात है तो इनमें से कई लोग वर्षों से यहां रह रहे हैं। उन्होंने आज तक कब-कब हुड़दंग मचाया?

केजरीवाल का यह कहना भी सत्य नहीं है कि 'सीएए लागू होने से देशभर में भारी संख्या में पड़ोसी देशों से घुसपैठिए आ जाएंगे।' अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक गिनती में न के बराबर रह गए हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में कुछ लाख की तादाद में हैं। उन्हें वीजा देने में बहुत सावधानी बरती जाती है। चुनिंदा लोग ही वीजा पाने में सफल होते हैं। रही बात 'घुसपैठ' की, तो पाकिस्तान से लगती एलओसी व अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बीएसएफ व सेना का कड़ा पहरा है। उधर जो भी व्यक्ति घुसपैठ करता है, उससे उसका नाम और धर्म नहीं पूछा जाता, बल्कि पहले चेतावनी दी जाती है। फिर भी उसका आगे बढ़ना जारी रहता है तो कठोर कार्रवाई की जाती है। पाकिस्तानी अल्पसंख्यक यह बात भलीभांति जानते हैं, इसलिए ऐसा जोखिम मोल नहीं लेंगे, जिससे गोली लगने की नौबत आए। बांग्लादेश सीमा पर भी सुरक्षा बल सतर्क हैं। सीएए उक्त समुदायों के लोगों को किसी भी देश से और किसी भी तारीख को आते ही नागरिकता नहीं दे देता। इसके लिए तीन देशों और 31 दिसंबर, 2014 तक आने जैसे कड़ी शर्तें रखी गई हैं। जो लोग इनका उल्लंघन करेंगे, वे नागरिकता के पात्र नहीं होंगे। याद रखें कि जो लोग सामान्यत: नागरिकता के पात्र हैं, उनके लिए भी प्रक्रिया निर्धारित की गई है। सुरक्षा एजेंसियां उनकी जांच करने के बाद ही फाइल आगे बढ़ाएंगी। भारत की नागरिकता इतनी सस्ती नहीं कि कोई भी आकर दावा कर ले, उसे तुरंत हासिल कर ले और उसके बाद देशभर में हुड़दंग मचाए। हुड़दंगियों से निपटना सुरक्षा बल अच्छी तरह जानते हैं। केजरीवाल का यह बयान कि 'क्या आप चाहेंगे कि आपके घर के सामने पाकिस्तान से आए लोग झुग्गी डालकर रहें', भी अतिशयोक्तिपूर्ण है। पाकिस्तान से आए लोगों ने कितने घरों के सामने झुग्गियां बनाई हैं? नागरिकता मिलने के बाद इनके रहने की भी उचित व्यवस्था हो जाएगी। बेहतर होता, अगर केजरीवाल राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर ऐसी ही चिंता रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का जिक्र करते हुए जताते, जो आए दिन किसी-न-किसी इलाके से पकड़े जा रहे हैं।

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