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हनीट्रैप: सतर्कता है जरूरी

अशांति, अलगाववाद और आतंकवाद फैलाने के लिए कुख्यात है आईएसआई

हनीट्रैप: सतर्कता है जरूरी
उप्र एटीएस की तारीफ करनी होगी, जिसने आईएसआई के इस ‘जाल’ को सतर्कता और तकनीकी कौशल से खूब काटा है

मास्को स्थित भारतीय दूतावास में कार्यरत एक कर्मचारी पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए जासूसी करने का आरोप अत्यंत गंभीर है। हाल के वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें आईएसआई ने 'हनीट्रैप' के जरिए किसी भारतीय नागरिक को लालच दिया और फिर उससे देश-विरोधी कृत्य करवाया। अशांति, अलगाववाद और आतंकवाद फैलाने के लिए कुख्यात आईएसआई के लिए अब भारत की जासूसी करवाने का काम पहले की तुलना में काफी आसान हो गया है। उसने इसके लिए इंटरनेट का भरपूर इस्तेमाल किया है। पहले जहां ऐसे कामों में काफी समय और संसाधन लगते थे, अब महज कुछ बटन दबाने से सबकुछ हो जाता है। एक ओर जहां मोबाइल फोन व इंटरनेट ने आईएसआई जैसी एजेंसियों के लिए काफी आसानी पैदा कर दी है, वहीं भारत के आम नागरिकों व सरकारी कर्मचारियों (विशेष रूप से वे, जो संवेदनशील स्थानों पर तैनात हैं) के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। पिछले तीन वर्षों में हनीट्रैप के जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें से ज्यादातर में एक ही तरीका इस्तेमाल किया गया है। पहले सोशल मीडिया पर महिला के नाम और सुंदर चित्र के साथ (फर्जी) अकाउंट बनाया जाता है। फिर उससे भारतीय नागरिकों को जोड़ने की कोशिश की जाती है। उसके बाद 'दोस्ती' बढ़ाकर ऐसे तरीके से जानकारी हासिल की जाती है कि संबंधित व्यक्ति को भी पता नहीं चलता कि उसने राष्ट्रीय सुरक्षा को कितने बड़े खतरे में डाल दिया है!

प्राय: आईएसआई हनीट्रैप के लिए ऐसे व्यक्ति को 'शिकार' बनाने की कोशिश करती है, जिससे उसे भारत की सुरक्षा व्यवस्था एवं सामरिक महत्त्व से जुड़ी जानकारी हासिल हो। इसलिए ऐसे स्थानों पर तैनात कर्मचारियों को तो सतर्क रहना ही चाहिए। साथ ही आम लोगों को भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए सावधान रहना चाहिए। चूंकि ऐसे मामले आ चुके हैं, जिनमें आईएसआई द्वारा भारत के आम लोगों से जानकारी हासिल करना पाया गया। उन्हें 'रूपजाल' और धन का लालच देकर सरहदी इलाकों, ट्रेनों की आवाजाही, बिजली घर, पेट्रोल पंपों, अस्पताल और आस-पास के इलाकों के नक्शों की जानकारी लेने की कोशिश की जाती है। सामान्य व्यक्ति यही सोचता है कि ये स्थान राष्ट्रीय सुरक्षा से नहीं जुड़े हैं, लेकिन ऐसा सोचना भ्रम है। इन स्थानों से संबंधित जानकारी का दुरुपयोग हो सकता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। ऐसे में आम नागरिकों को तो विशेष रूप से चौकन्ना रहना चाहिए। सोशल मीडिया पर अनजान व्यक्ति से 'दोस्ती' करने से परहेज ही करें। अगर उस अकाउंट से धन की पेशकश की जाए या किसी तरह का प्रलोभन देकर कोई जानकारी मांगी जाए तो यह खतरे की घंटी है। ताज्जुब इस बात पर होता है कि आईएसआई की 'महिला' एजेंटों के जाल में ऐसे लोग भी फंस जाते हैं, जिनसे अपेक्षा की जाती है कि उन्हें तो दुश्मन के 'हथकंडों' की ज़रूर जानकारी होगी। पिछले कुछ वर्षों में हनीट्रैप के कई मामले सामने आने के बाद संबंधित विभागों, दफ्तरों में अधिकारियों व कर्मचारियों को सजग रहने की हिदायत दी गई है। उच्चाधिकारियों के निर्देश पर कार्यशालाएं भी आयोजित करवाई जाती हैं, जिनमें बताया जाता है कि दुश्मन देशों की एजेंसियां कैसे-कैसे नापाक हथकंडे अपनाकर जानकारी हासिल करने की फिराक में रहती हैं। फिर भी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं! हालांकि उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते की तारीफ करनी होगी, जिसने आईएसआई के इस 'जाल' को सतर्कता और तकनीकी कौशल से खूब काटा है। इसके अधिकारियों ने अपनी सूझबूझ से देश को बड़े नुकसान से बचा लिया।

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