Dakshin Bharat Rashtramat

स्थानीय उत्पादों वाली दीपावली

अपने कारोबार से लोगों को रोजगार देना भी लक्ष्मी और भारत मां की पूजा है

स्थानीय उत्पादों वाली दीपावली
भारत के कई गांव-शहर ऐसे हैं, जहां कभी हस्तनिर्मित जूतों, इत्र, कपड़ों, कलाकृतियों ... आदि का कारोबार खूब होता था

दीपावली ऐसा पर्व है, जिसका हमारे देश की अर्थव्यवस्था से बहुत गहरा संबंध है। इस दिन भगवान गणपति, मां लक्ष्मी और सरस्वती के पूजन का यह भी संदेश है कि परिवार हो या देश, उसमें सुख-शांति के लिए बुद्धि, धन और ज्ञान का होना बहुत जरूरी है। जहां इनमें से एक का भी अभाव होगा, वहां असंतुलन पैदा होगा, जो कई समस्याओं का कारण बनेगा। इस दीपावली के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से स्थानीय स्तर पर विनिर्मित उत्पाद खरीदने का जो आह्वान किया है, वह भी लक्ष्मी पूजन का एक स्वरूप कहा जा सकता है।

प्राय: यह देखने में आता है कि हमारे त्योहारों पर बाजारों में विदेशी सामान की खूब बिक्री होती है। दीपावली के दीपक की जगह तो वर्षों पहले चीनी झालरें ले चुकी हैं। मकर संक्रांति पर चीनी मांझे के साथ पतंगें आसमान में अठखेलियां करती नजर आ जाती हैं। भले ही राज्य सरकारें इस मांझे के खतरे को देखते हुए प्रतिबंध लगाने के कितने ही जतन कर लें। होली पर भी चीनी पिचकारियों का बोलबाला होता है। इसके अलावा नए साल और खास मौकों पर मोबाइल फोन तथा विद्युत उपकरणों में भी 'मेड इन चाइना' ही छाया रहता है।

हां, हाल के वर्षों में दीपावली से पहले सोशल मीडिया में 'चीनी झालरों का बहिष्कार करें' जैसे संदेश खूब आने लगे हैं, जिनसे प्रेरित होकर लोग चीनी माल से कुछ परहेज तो करते हैं, लेकिन अभी स्थिति कोई बहुत उत्साहजनक नहीं है। चीन के साथ हमारे संबंध मधुर नहीं हैं और न निकट भविष्य में सुधार की कोई संभावना है। लेकिन उसका माल हमारे बाजारों में खूब खप रहा है। एक तरफ तो चीन हमसे शत्रुता रखता है, लेकिन दूसरी तरफ हमारे बाजारों से मोटा मुनाफा कमाता है।

बात सिर्फ चीन की नहीं है। हमारे द्वारा सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप, सर्च इंजन ... तक इस्तेमाल की जाने वाली ज्यादातर सेवाएं विदेशी हैं। आज लोग विदेशी सोशल मीडिया ऐप्स पर 'विदेशी सामान' के बहिष्कार की अपीलें कर रहे हैं, क्योंकि हमने ऐसे मजबूत ऐप्स विकसित ही नहीं किए, जो इन्हें टक्कर दे सकें। लिहाजा हमारा विरोध चीनी झालरों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। बल्कि हमें स्वदेशी उद्योगों को मजबूत करने पर जोर देना चाहिए।

इस दीपावली पर जब लोग दीपक, तेल, मिठाई जैसी चीजें लेंगे तो यह राशि किसी भारतवासी के घर में ही जाएगी। इसका फायदा देश की अर्थव्यवस्था को होगा। 'वोकल फॉर लोकल' की इस भावना का विस्तार करते हुए यह कोशिश करें कि जब कपड़े, मोबाइल फोन, विद्युत उपकरण और अन्य सामान खरीदें, तो उसका निर्माता भी कोई भारतीय हो। प्राय: यह 'तर्क' दिया जाता है कि कुछ लोगों के खरीदने से क्या होगा, ज़्यादातर लोग तो चीनी, अमेरिकी सामान खरीद रहे हैं और स्वदेशी चीजें आसानी से नहीं मिलतीं! तो इसका जवाब यह है कि अगर एक दिन में पांच लोग भी किसी दुकान पर स्वदेशी सामान की मांग करेंगे तो उसके उपलब्ध नहीं होने के बावजूद दुकानदार यह चाहेगा कि अब छठा ग्राहक उसके यहां से खाली हाथ न जाए। वह उस सामान के निर्माता से संपर्क करेगा। इसलिए स्वदेशी सामान की कम-से-कम मांग तो करें!

भारत के कई गांव-शहर ऐसे हैं, जहां कभी हस्तनिर्मित जूतों, इत्र, कपड़ों, कलाकृतियों ... आदि का कारोबार खूब होता था। परिवार के परिवार इन काम-धंधों में लगे रहते थे। धीरे-धीरे मशीनीकरण हुआ, विदेशी कंपनियां आईं, जिन्होंने अपने ब्रांड का आक्रामक तरीके से प्रचार किया।

इसका नतीजा यह हुआ कि स्वदेशी उद्योग पिछड़ते गए, दम तोड़ते गए। नई पीढ़ी दूसरी जगह जाकर नौकरियां ढूंढ़ने लगी। इस अनुभव से सबक लेते हुए स्थानीय कारोबारियों को चाहिए कि वे नई तकनीक अपनाने, नए बदलाव करने और अपने उत्पाद का प्रचार करने से पीछे न रहें। गुणवत्ता में हमेशा सुधार करते जाएं और ग्राहक के साथ रिश्ता मजबूत बनाकर रखें। अपने कारोबार से लोगों को रोजगार देना भी लक्ष्मी और भारत मां की पूजा है।

About The Author: News Desk

News Desk Picture