लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 'जलवायु परिवर्तन' की चुनौती से निपटने के लिए उचित कहा है कि नीतियां और कानून बना देना ही काफी नहीं है, हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव लाकर सामूहिक योगदान देना होगा। वास्तव में हमारे तन, मन और जीवन का निर्माण इस तरह किया गया है कि अगर हम प्रकृति के साथ तालमेल कायम रखेंगे तो स्वस्थ रहेंगे। जहां तालमेल बिगड़ेगा, वहां रोगों व दु:खों की उत्पत्ति होगी। आज यही हो रहा है।
डेढ़ दशक पहले पर्यावरण संरक्षण पर आधारित एक मशहूर कार्यक्रम (जिसके वीडियो अब यूट्यूब पर भी मौजूद हैं) में प्रदूषण, घटते भूजल स्तर, जीव-जंतुओं की लुप्त होतीं प्रजातियों और जलवायु परिवर्तन को लेकर जो चिंताएं जाहिर की गई थीं, वे आज सच साबित होती जा रही हैं। वैज्ञानिक काफी समय से चेतावनी दे रहे हैं कि हमें अपनी जीवनशैली में सुधार लाने होंगे। अगर इसे सिर्फ सरकारों का काम समझकर पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर डाल देंगे तो कुछ दशक बाद हालात बड़े मुश्किल हो सकते हैं।
टोरंटो विश्वविद्यालय में पोस्ट डॉक्टरल फेलो लुइस आर्चर ने माना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री बर्फ पिघलने से पोलर बियर का जीवन मुश्किल हो गया है। चूंकि जब समुद्री बर्फ पिघलने लगती है तो पोलर बियर को कई महीनों तक बिना भोजन के रहना पड़ता है। यूं तो यह अवधि सभी भालुओं के लिए चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन उन मादा पोलर बियर के लिए दिक्कतें बढ़ जाती हैं, जो बच्चों को स्तनपान कराती हैं।
अब कुछ लोग यह 'तर्क' दे सकते हैं कि पोलर बियर का हमारे जीवन से क्या लेना-देना? दरअसल धरती पर विभिन्न जीव-जंतुओं का जो सिलसिला चला आ रहा है, उसका हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव होता है। अगर कुछ जीव विलुप्त हो गए तो इससे पूरा चक्र बिगड़ जाएगा। उदाहरण के लिए, जिन इलाकों में मधुमक्खियां कम होने लगती हैं, वहां सेब और फूलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव होता है। इससे उन किसानों की आमदनी प्रभावित होती है, जो इस कारोबार से जुड़े हैं।
जलवायु परिवर्तन से उभयचर प्रजातियों पर खतरा मंडराने लगा है। हाल में ‘नेचर जर्नल’ में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया कि भारत में 426 प्रजातियों में से 136 को खतरे में पाया गया है। उच्च उभयचर विविधता वाले राज्यों में, केरल में 178 प्रजातियां हैं, जिनमें से 84 खतरे में हैं, तमिलनाडु 128 प्रजातियों के साथ दूसरे स्थान पर है, जिनमें से 54 खतरे में हैं और कर्नाटक 100 प्रजातियों के साथ तीसरे स्थान पर है, जिनमें से 30 खतरे में हैं। यही नहीं, भारत के पश्चिमी घाट उन क्षेत्रों में से थे, जहां खतरे वाली प्रजातियों की सबसे बड़ी सांद्रता दर्ज की गई।
इसके अलावा कैरेबियाई द्वीप, मेसो-अमेरिका, उष्णकटिबंधीय एंडीज, पश्चिमी कैमरून और पूर्वी नाइजीरिया, मेडागास्कर, श्रीलंका के पहाड़ और जंगल शामिल हैं। हाल में सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील पर बादल फटने की घटना के दु:खद परिणाम रहे। पिछले साल पाकिस्तान में आए भयंकर सैलाब ने अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर की चोट पहुंचाई थी। लाखों परिवारों को नुकसान उठाना पड़ा था। जलवायु परिवर्तन पर हो रहे सभी अध्ययनों का यह निष्कर्ष सामने आता है कि हमें धरती की सेहत का ध्यान रखना होगा। हमें पर्यावरण की परवाह करनी होगी।
आज जिस तरह वायुमंडल में धुआं घुल रहा है, उससे कई बड़े शहरों में तो श्वास रोगियों का रहना मुश्किल हो गया है। हर साल पंजाब में पराली जलाने से उत्पन्न हुआ धुआं राष्ट्रीय राजधानी तक आ जाता है। दूसरी ओर ‘ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर’ की रिपोर्ट यह कह रही है कि वैश्विक कोयला उद्योग में साल 2035 तक चार लाख से ज्यादा खनिकों की छंटनी की आशंका है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में चीन और भारत शामिल हैं। ऐसे में भारत के सामने दोहरी चुनौती है। उसे एक तरफ तो पर्यावरण संरक्षण के उपायों को तेज करना होगा। वहीं, दूसरी तरफ स्वच्छ ऊर्जा के विकल्पों को अपनाते हुए रोजगार के अवसरों का अधिकाधिक सृजन करना होगा।