भारत मां का मुकुट

समस्त भारतवासियों की हार्दिक इच्छा है कि पीओके जल्द से जल्द भारत में मिले

आज जब हम अपने देश का मानचित्र देखते हैं तो एलओसी किसी खंजर की तरह चुभती है

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह का यह बयान कि 'पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) अपने आप भारत के अंदर आएगा, थोड़ा-सा इंतजार कीजिए' के गहरे मायने हैं। वीके सिंह राजनीति में आने से पहले सेना में थे। वे थल सेना प्रमुख भी रह चुके हैं। उन्हें सैन्य व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों की गहरी समझ है, इसलिए उनका यह बयान काफी वजन रखता है। 

समस्त भारतवासियों की हार्दिक इच्छा है कि पीओके जल्द से जल्द भारत में मिले। पाकिस्तान भले ही संपूर्ण जम्मू-कश्मीर को कुछ कृत्रिम शब्दों से संबोधित करता रहे, लेकिन यह पूरा क्षेत्र भारत मां का मुकुट है। आज जब हम अपने देश का मानचित्र देखते हैं तो एलओसी किसी खंजर की तरह चुभती है। 

अगर तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने दूरदर्शिता व दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए एक-एक पाकिस्तानी घुसपैठिए को मार भगाने तक अभियान जारी रखा होता और अंतरराष्ट्रीय ताकतों को इस मामले में शामिल न किया होता तो आज गिलगित, बाल्टिस्तान से लेकर पूरा पीओके हमारे पास होता। भारत मां का मुकुट पूरे नूर के साथ जगमगा रहा होता। 

भारतीय संसद भी इस बात पर मोहर लगा चुकी है कि पीओके समेत जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। हमारा उस पर जायज़ हक़ है। इस पूरे इलाके पर तिरंगा झंडा होना चाहिए। आमतौर पर जब हम पीओके की बात करते हैं तो कुछ भावुक हो जाते हैं और उससे जुड़े विशेष तथ्यों की ओर ध्यान नहीं देते। 

प्राय: राष्ट्रीय मीडिया में उन पर कम ही चर्चा होती है। निस्संदेह आज पीओके में पाकिस्तान सरकार के प्रति गहरा गुस्सा है। इसकी बड़ी वजह है आर्थिक बदहाली और महंगाई। पाक सरकार ने पीओके को विकास से पूरी तरह वंचित रखा है, क्योंकि उसे डर है कि एक दिन यह इलाका उसके हाथ से निकलेगा। 

वहीं, उधर प्राकृतिक संसाधनों की भारी लूट मची है। जिन जल स्रोतों से बिजली बनाई जाती है, वह पीओके की जनता को बहुत महंगी मिलती है। वहां के जंगलों से कीमती लकड़ी की कटाई कर पाक फौज के अफसर मालामाल हो रहे हैं। इससे जनता में आक्रोश पैदा होना स्वाभाविक है।

इसके अलावा वहां समुदाय के अलग-अलग हिस्सों में आस्था को लेकर टकराव बढ़ रहा है। पिछले दिनों वहां ईशनिंदा बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ था और हजारों लोगों ने आक्रोश प्रकट किया था। उनमें से कई लोगों ने यह मांग भी की थी कि उनके लिए रास्ते खोल दिए जाएं, वे भारत के साथ मिलना चाहते हैं। हमें इसके दूसरे पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। 

आज पीओके में रहने वाले ज़्यादातर लोग उस पीढ़ी से नहीं हैं, जो साल 1947-48 में थी। वहां कश्मीरी और डोगरी बोलने वाले मुश्किल से मिलते हैं। यह कैसे हुआ? वास्तव में पाक ने उस इलाके पर अपना कब्जा मजबूत करने के लिए खुद के पंजाब प्रांत से बड़ी तादाद में लोगों को वहां बसा दिया। इस पड़ोसी देश में नौकरशाही से लेकर फौज तक, सब जगह पंजाब को तरजीह दी जाती है। 

पीओके के साथ ऐसा ही हुआ है। इसलिए वहां रहने वाली मौजूदा पीढ़ी का बड़ा हिस्सा न तो कश्मीर की संस्कृति से परिचित है और न उसकी भाषा के साथ उसका कोई जुड़ाव है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या 'कट्टरता और नफरत' है। पिछले करीब सात दशकों में पाक फौज और सरकार ने पीओके को इसकी प्रयोगशाला बना रखा है। इसका नतीजा यह है कि आज वह इलाका आतंकवाद का गढ़ बन चुका है। वहां आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने के शिविर चलाए जा रहे हैं। बाद में उन्हें हथियार देकर एलओसी की ओर धकेल दिया जाता है। 

अभी जो लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, उसकी जड़ में महंगाई और खाद्यान्न की किल्लत है। जिस दिन उन्हें थोड़ी-सी राहत मिल जाएगी, वे भारत और भारतवासियों के प्रति नफरत को दोबारा खुलकर जाहिर करने लग जाएंगे। हमें नहीं भूलना चाहिए कि पीओके में कम से कम तीन पीढ़ियां ऐसी तैयार हो चुकी हैं, जिन्हें भारत से नफरत करने की घुट्टी पिलाई गई है। अगर कोई व्यक्ति ऐसी मानसिकता लेकर भारत के बहुसांस्कृतिक वातावरण में आएगा तो इससे शांति, सद्भाव और सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा होंगी। 

इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ही पीओके को वापस लेने की योजना पर कार्य होना चाहिए। ऐसे कार्यों में समय लगता है, लेकिन दृढ़ निश्चयी लोग उन्हें पूरा कर दिखाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण इज़राइल के रूप में मौजूद है।

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