नकली छवि
क्या मालूम, चीन में निवेश के बाद किस बात से कुपित होकर शी जिनपिंग वक्र दृष्टि कर लें
शी जिनपिंग अपनी ग़लतियों को दाएं-बाएं डालकर खुद को पाक-साफ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 'आर्थिक संकट' के बीच धैर्य बनाए रखने का आह्वान कर स्पष्ट कर दिया है कि ड्रैगन ने अपनी जो नकली छवि बनाई थी, अब उसकी पोल खुलने लगी है। विशेषज्ञ तो कई महीनों से कह रहे थे कि चीन में आर्थिक संकट आने वाला है, जिसे अब शी जिनपिंग को स्वीकार करना पड़ रहा है।
हालांकि चीनी राष्ट्रपति ने इसका ठीकरा भी पश्चिमी देशों पर ही फोड़ दिया और पार्टी की पत्रिका ‘क्यूशी’ में यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि पश्चिमी देश अपने भौतिकवाद तथा ‘आध्यात्मिक दिवालियापन’ के कारण ‘परेशानियां बढ़ा रहे हैं।’शी जिनपिंग एक चालाक तानाशाह की तरह अपनी ग़लतियों को दाएं-बाएं डालकर खुद को पाक-साफ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि उनके पास देशभर से जो आंकड़े आ रहे हैं, वे बता रहे हैं कि हालात बिगड़ते जा रहे हैं ... युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है ... बैंकों की हालत पतली है ... लोगों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है ... जमीन-जायदाद का जो क्षेत्र कभी मुनाफे की गारंटी समझा जाता था, अब वह दरकने लगा है ... निवेशकों को घाटा हो रहा है ... उद्यमियों को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है।
हालांकि सरकार यह दिलासा देती रही है कि वह संघर्षरत उद्यमियों का सहयोग करेगी, लेकिन जुलाई में उपभोक्ता व कारखानों की गतिविधियां कमजोर ही रहीं। देश में अप्रैल-जून में आर्थिक वृद्धि घटकर 0.8 प्रतिशत रह गई, जो जनवरी-मार्च में 2.2 प्रतिशत थी। इसका सीधा-सा अर्थ है कि बाजार में मांग नहीं है, लिहाज़ा कारखानों का उत्पादन घटता जा रहा है।
हाल में बीजिंग समेत देश के कई हिस्सों में आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी, जिसके सामने शी जिनपिंग और उनकी सलाहकार 'मंडली' बेबस ही नजर आए। जिस पीएलए की शान में चीनी नेता और सैन्य अधिकारी यह अतिशयोक्तिपूर्ण दावा करते हैं कि 'पहाड़ को हिलाना संभव है, पीएलए को हिलाना असंभव है', वह भी कुदरत के कहर के सामने विवश थी। इससे लोगों में आक्रोश है, क्योंकि उन तक मदद नहीं पहुंची।
शी जिनपिंग अपनी पीठ खुद ही थपथपाने के लिए युवाओं के बीच बेरोजगारी संबंधी अद्यतन आंकड़े जारी करवाते रहते हैं। इसके जरिए यह संदेश देने की मंशा रहती है कि उनके सत्ता में आने के बाद बेरोजगारी कम हुई है, खुशहाली आई है। हालांकि अब उन आंकड़ों का प्रकाशन बंद करवा दिया गया है, क्योंकि बेरोजगारी के असल आंकड़े प्रकाशित करने से शी जिनपिंग के 'विकास पुरुष' होने की छवि को धक्का पहुंच सकता है और अगर (बेरोज़गारी को बहुत कम बताकर) ग़लत आंकड़े प्रकाशित कर दिए जाएं तो युवाओं का आक्रोश फूट सकता है। वे सड़कों पर उतर कर बता सकते हैं कि चीन में बेरोजगारी का असल आंकड़ा सरकारी दावों से ज्यादा है। वे सरकार की नीतियों पर सवाल भी उठा सकते हैं।
इसलिए शी जिनपिंग ने सबसे आसान रास्ता चुना, आंकड़ों का प्रकाशन ही बंद कर दिया और युवाओं को यह नसीहत दे डाली कि 'हमें धैर्य बनाए रखना चाहिए और स्थिर व चरणबद्ध प्रगति पर जोर देना चाहिए।' युवा रोजगार मांग रहे हैं, लेकिन शी जिनपिंग यह उपदेश दे रहे हैं कि 'पश्चिमी शैली का आधुनिकीकरण अधिकतर लोगों के हित में नहीं है, बल्कि पूंजीगत हितों को बढ़ावा देने की कोशिश करता है। आज पश्चिमी देश परेशानियां बढ़ा रहे हैं ... वे भौतिकवाद और आध्यात्मिक दिवालियापन जैसी समस्याओं से निपटने में असमर्थ हैं।'
निस्संदेह तमाम चुनौतियों के बावजूद चीन आज भी बड़ी आर्थिक शक्ति है। उसके पास विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार है। वह दुनियाभर के बाजारों में अपना माल पहुंचाने के लिए नए-नए तरीके अपना रहा है, लेकिन अब दुनिया उसके रवैए से चिढ़ने लगी है। बड़ी आर्थिक शक्ति बनने के साथ जो विनम्रता आनी चाहिए, वह चीन में नहीं है। उसका रवैया बदमाशों वाला है, जो दूसरों के दु:ख में ही अपना सुख ढूंढ़ता है।
उसने कोरोना वायरस को लेकर बहुत लापरवाही बरती, जिसने दुनिया को बड़े घाव दिए। वहीं, प्रसिद्ध उद्योगपति जैक मा द्वारा की गई हल्की-सी आलोचना के बाद उनके साथ जो बर्ताव किया गया, वह भी चर्चा का विषय रहा। इससे उद्योग जगत चीन को आशंका भरी दृष्टि से देख रहा है।
क्या मालूम, चीन में निवेश के बाद किस बात से कुपित होकर शी जिनपिंग वक्र दृष्टि कर लें! फिर निवेश तो डूबेगा ही, 'जेलयात्रा' के योग भी बन सकते हैं। शी जिनपिंग और उनकी सलाहकार 'मंडली' को मौजूदा हालात से सबक लेना चाहिए। वे तानाशाही, मनमानी और टकराव का रास्ता छोड़ें। समन्वय और सद्भाव में ही सबका कल्याण है।