भारत का लोकतंत्र

राहुल ने भारतीय लोकतंत्र की कई खूबियां गिनाईं

निस्संदेह कुछ सामाजिक बुराइयां लोकतंत्र को प्रभावित करने की कोशिश करती हैं

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का अमेरिका में नेशनल प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में यह कहना तो उचित है कि ‘भारत में लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ना हमारा काम है और यह एक ऐसी चीज है, जिसे हम समझते हैं, जिसे हम स्वीकार करते हैं और हम ऐसा कर रहे हैं’, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में कथित बिखराव को लेकर जो टिप्पणी की है, वह ग़ैर-ज़रूरी थी। 

राहुल का बयान इस प्रकार था, 'लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि भारतीय लोकतंत्र पूरी दुनिया की भलाई के लिए है। भारत इतना बड़ा है कि यदि भारत के लोकतंत्र में बिखराव पैदा होता है तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। इसलिए यह आपको सोचना है कि भारतीय लोकतंत्र को आपको कितना महत्त्व देना है, लेकिन हमारे लिए यह एक आंतरिक मामला है और हम इस लड़ाई को लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं और हम जीतेंगे।' 

राहुल ने भारतीय लोकतंत्र की कई खूबियां गिनाकर यह भी कह दिया कि 'यदि इसमें बिखराव पैदा होता है ...', वास्तव में विदेश जाकर दुनियाभर के संवाददाताओं के सामने ऐसा कहने की जरूरत नहीं थी। नेताओं को इससे परहेज ही करना चाहिए। भारत में समय के साथ लोकतंत्र मजबूत हुआ है। 

निस्संदेह कुछ सामाजिक बुराइयां लोकतंत्र को प्रभावित करने की कोशिश करती हैं। उनके संबंध में जागरूकता भी आई है। प्राय: नेतागण लोकतंत्र की मजबूती के लिए जो अवधारणा बना लेते हैं, वह इस बात पर भी निर्भर करती है कि वे सत्ता में हैं या विपक्ष में बैठे हैं।

यह लोकतंत्र की ही शक्ति है, जिसने दशकों तक किसी पार्टी को शासन का अवसर दिया। कालांतर में नई पार्टियां भी आईं, जिन्होंने देखते ही देखते अपना जनाधार बना लिया। फिर राज्य में सरकार बनाई या केंद्र की सत्ता में सहयोगी रहीं। सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, बीआरएस, जद (एस), नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी ... और ताजा-तरीन उदाहरण आम आदमी पार्टी (आप) है, जिसकी दिल्ली और पंजाब में सरकारें हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन चौंकाने वाला रहा था। वह आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी कर रही है। 

अगर भारत के लोकतंत्र में बिखराव आता या इसका कोई गंभीर लक्षण दृष्टिगत होता तो यह इतना विविधतापूर्ण बिल्कुल नहीं होता। स्पष्ट है कि तमाम आरोपों और प्रत्यारोपों के बावजूद भारत में लोकतंत्र आगे बढ़ता जा रहा है, मजबूत होता जा रहा है। यह समय के साथ और मजबूत होगा। अब देश का युवा कितना जागरूक हो गया है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह गंभीर से गंभीर विषय पर खुलकर राय देता है। 

बात चाहे सर्जिकल स्ट्राइक की हो या एयरस्ट्राइक की, अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निष्क्रिय करने की हो या सीएए की ... वह जानता है कि देश का हित किससे जुड़ा है। आज का युवा मतदाता जब वोट देता है तो यह भी देखता है कि संबंधित उम्मीदवार/दल का राष्ट्रीय समस्याओं को लेकर क्या दृष्टिकोण है। चुनाव विश्लेषक भी यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि कुछ महीने पहले मतदाता ने विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी को धूमधाम से सत्ता सौंपी थी, लोकसभा चुनाव में उसे पूरी तरह नकार दिया! यह है भारत के लोकतंत्र की शक्ति! 

आज युवा मतदाता किसी पार्टी को मात्र इस आधार पर वोट देने के लिए तैयार नहीं होता, क्योंकि उसके पिता और दादा उसे वोट देते हैं। निस्संदेह उसके लिए शिक्षा, रोजगार, खेती, चिकित्सा, खाद्यान्न, आवास, बिजली, पानी और अन्य मूलभूत सुविधाओं से जुड़े मुद्दे मायने रखते हैं, लेकिन वह यह भी देखता है कि कौनसी पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर ज्यादा गंभीर है, आम लोगों को सहायता पहुंचाने में किस पार्टी की नीतियां अधिक पारदर्शी हैं, दशकों से चली आ रहीं समस्याओं के समाधान के लिए किस पार्टी का नेतृत्व अधिक रुचि दिखा रहा है ...। 

भारत का लोकतंत्र विविधता में एकता का सबसे सुंदर उदाहरण है। हर पार्टी के नेतागण को चाहिए कि जब विदेश में हों तो इस बात का ध्यान रखें कि आप भी वहां देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, इसलिए शब्दों का चयन इस प्रकार करें कि वे हमारे लोकतंत्र तथा व्यवस्था के प्रति दुनिया का भरोसा और मजबूत करें।

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