प्रशंसनीय पहल

आज देश में पर्यावरण प्रदूषण जिस स्तर तक बढ़ गया है, उससे कई समस्याएं पैदा हो रही हैं

बड़े शहरों में तो हालात और मुश्किल होते जा रहे हैं

गुजरात के सूरत जिले में प्रशासन द्वारा पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई एक अनूठी पहल सबका ध्यान आकर्षित कर रही है। अगर यह देश के अन्य जिलों में भी शुरू की जाए तो इसके परिणाम बहुत अच्छे आएंगे। 

सूरत जिला प्रशासन कर्मचारियों को साइकिल का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इसके तहत वे महीने के पहले शनिवार को साइकिल से दफ्तर जाएंगे। अगर इस पहल को धरातल पर ठीक तरह से लागू किया जाए तो इसका संदेश दूर तक जाएगा और अन्य जिले भी ऐसा करने के लिए प्रेरित होंगे। इससे न केवल पेट्रोल की खपत कम होगी, बल्कि वायु प्रदूषण से भी कुछ निजात मिलेगी। 

इस पहल को लेकर यह तर्क भी दिया जा सकता है कि महीने में एक शनिवार को साइकिल चलाने से पर्यावरण संरक्षण को कितना बल मिल जाएगा! दरअसल यह अभी शुरुआत है, इसलिए तुरंत किसी बड़े परिणाम की आशा नहीं करनी चाहिए। जब यह बात लोगों की आदत में शुमार हो जाएगी, वे पहले शनिवार के बाद दूसरे और हर शनिवार को साइकिलों से दफ्तर जाने लगेंगे तो ज़रूर नतीजे भी उसी के मुताबिक आएंगे। अभी तो स्थिति यह है कि प्राय: हर छोटे-बड़े शहर में सड़कों पर पेट्रोल-डीजल वाले वाहनों का कब्जा है। कोई इक्का-दुक्का साइकिल सवार दिख जाता है। 

हमारी सड़कें भी साइकिल सवारों के अनुकूल नहीं हैं। सुबह-शाम, जब बड़ी संख्या में वाहनों का आवागमन होता है तो किसी साइकिल सवार के लिए वहां से निकल पाना बहुत मुश्किल होता है। तेज रफ्तार से दौड़तीं कारों और बाइकों के सामने साइकिल कहां टिकती है? 

आज देश में पर्यावरण प्रदूषण जिस स्तर तक बढ़ गया है, उससे कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। बड़े शहरों में तो हालात और मुश्किल होते जा रहे हैं। ज्यादा धुएं की स्थिति में श्वास रोग से पीड़ित लोगों को काफी परेशानी होती है।

अगर प्रदूषण इसी तरह बढ़ता रहा तो अगले कुछ वर्षों में स्थिति और चिंताजनक हो सकती है। साइकिल इस समस्या का तुरंत समाधान नहीं कर सकती, लेकिन यह उन कई उपायों में से एक उपाय ज़रूर है, जिससे पर्यावरण को फायदा होता है। अगर इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जाए तो यह पर्यावरण के अलावा सेहत के लिए भी फायदेमंद है। 

आज दफ्तर में कामकाज की वजह से व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि लोग व्यायाम के लिए समय नहीं निकाल पाते। सुबह तैयार हुए, नाश्ता किया और दफ्तर पहुंच गए। कुर्सी पर आठ से 10 घंटे बैठकर काम किया। शाम को घर आ गए, फिर मोबाइल फोन में व्यस्त हो गए। लोगों की दिनचर्या ऐसी हो गई है कि दिन में आधा घंटा सेहत को नहीं दे पाते। 

अगर साइकिल से दफ्तर जाएंगे तो व्यायाम भी हो जाएगा। जब कोरोना महामारी का खतरा बढ़ रहा था तो कई देशों में लोग साइकिल खरीदने लगे थे। इससे बसों की भीड़ से भी बचाव हो जाता था, जिससे संक्रमण की आशंका कम होती थी। ईंधन की बचत होती थी। अगर साइकिल के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए तो विदेशी मुद्रा भंडार पर भार कम हो सकता है। 

इसके अलावा सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सकती है, लेकिन यह उसी स्थिति में हो सकता है, जब सड़कों पर साइकिल सवारों के लिए सुरक्षित व सुविधापूर्ण आवागमन सुनिश्चित किया जाए। उनके लिए या तो अलग रास्ता बनाया जाए या मौजूदा सड़कों पर ही एक स्थान तय हो। उस पर अन्य वाहन न चलें। साइकिल के फायदों को देखते हुए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश, जो तेल और आर्थिक दृष्टि से संपन्न हैं, भी नागरिकों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वे साइकिल चलाएं। वे उनके लिए खास रास्ते बनवा रहे हैं। 

यह उनकी हरित विकास पहल का हिस्सा है। भारत में भी साइकिल के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। सूरत जिला प्रशासन की पहल इस दिशा में एक अच्छा कदम है, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए।

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