दूर हो गया भ्रम!

जेलकांड से इमरान को खूब सहानुभूति मिल रही है

आज पाक में स्पष्ट रूप से विभाजन नजर आ रहा है

आर्थिक रूप से बदहाल पाकिस्तान को उसके पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कंगाली के और करीब पहुंचा दिया है। जो इमरान साल 2018 में सत्ता में आने के बाद पाक फौज का गुणगान करते नहीं थकते थे, अब उसे जी भरकर कोस रहे हैं। कभी उन्हें जनरल बाजवा सबसे ज्यादा लोकतंत्र समर्थक सेना प्रमुख लगते थे, अब वे उनके लिए आग उगल रहे हैं। मौजूदा सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर भी उनके निशाने पर हैं। 

इमरान में यह बदलाव कैसे आया? क्या उन्हें पहले पता नहीं था कि पाकिस्तानी फौज का चरित्र कैसा है? जिसने अपने (पूर्व) प्रधानमंत्रियों की हत्या तक से परहेज नहीं किया, उसके लिए इमरान ने यह ग़लतफ़हमी कैसे पाल ली कि वह उसे बख्श देगी? वास्तव में इमरान को यह भ्रम हो गया था कि वे प्रसिद्ध खिलाड़ी रह चुके हैं तो फौज उनके साथ नरमी से पेश आएगी। 

फौज को भी यह भ्रम था कि इमरान आएंगे तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहतर हो जाएगी, जिससे सैन्य अधिकारियों की मौज रहेगी। समय के साथ इन दोनों का ही भ्रम दूर हो गया। इमरान ने पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में बेहतरी लाना तो दूर, उसे और ज्यादा बिगाड़ दिया। 

हाल में उनके कार्यकर्ताओं ने जिस तरह हुड़दंग मचाया, उससे करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। वहीं, फौज ने भी इमरान को जेल की सैर करा दी, जिससे बचने के लिए वे कई बहाने कर रहे थे। हालांकि उन्हें उच्चतम न्यायालय से राहत मिल गई, जिसके बाद वे फौज व सरकार पर और ज्यादा हमले बोल रहे हैं। 

इस जेलकांड से इमरान को खूब सहानुभूति मिल रही है। वे इसे भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। उन्होंने वीडियो संदेश में जिस तरह फौज और सरकार को खरी-खोटी सुनाई, ऐसा 'दुस्साहस' पाकिस्तान में कोई नेता नहीं कर सका है।

आज पाक में स्पष्ट रूप से विभाजन नजर आ रहा है। फौज और शहबाज सरकार एक पाले में हैं तो इमरान और उच्चतम न्यायालय एक पाले में। दोनों आमने-सामने हैं। इमरान ने नया शिगूफा छेड़ दिया है कि फौज ने उन्हें राजद्रोह के आरोप में अगले 10 साल तक जेल में रखने की योजना बनाई है, लेकिन वे अपने खून के आखिरी कतरे तक ‘अपराधियों के गुट’ के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे। वास्तव में इमरान सियासी 'शहीद' की तरह दिखना चाहते हैं। 

वे अपने कार्यकर्ताओं के मन में यह बात बैठा चुके हैं कि पाकिस्तान की सभी समस्याओं का एक ही हल है कि उन्हें सत्ता में लाया जाए। वे साल 1971 के युद्ध को लेकर फौज को घेरते हैं। वे पाक में बेतहाशा बढ़ती महंगाई का ठीकरा फौज और सरकार के सिर फोड़ रहे हैं। हालांकि जब इमरान प्रधानमंत्री थे, तब भी आम पाकिस्तानी महंगाई से त्रस्त था। वे आर्थिक मोर्चे पर कोई कमाल नहीं दिखा पाए थे। अब भी उनकी छटपटाहट सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए है। 

इमरान के आलोचक कहते हैं कि उनके पास पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कोई योजना नहीं है। उनकी पूरी कवायद प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने के लिए है। अगर वे उसमें सफल हो गए तो उससे अगले दिन क्या करना है, खाली खजाना कैसे भरना है, रोजगार कैसे देंगे, आतंकवाद पर कैसे नियंत्रण करेंगे ... इन सवालों का उनके पास कोई जवाब नहीं है। 

इमरान खुद को 10 साल तक कैद में रखने की फौज की साजिश का दावा कर और ज्यादा सहानुभूति पाना चाहते हैं। वे इससे अपने समर्थकों को यह संदेश देना चाहते हैं कि उनके पास मुल्क बचाने का आखिरी मौका है ... अगर उन्हें जेल में डाल दिया तो शरीफ खानदान और फौजी अफसर पाकिस्तान को लूटकर खा जाएंगे, इसलिए किसी भी कीमत पर उनका साथ दें! हालांकि इमरान के शासनकाल में भी भ्रष्टाचार चरम पर था। 

उन्होंने सत्ता में आने से पहले 'भ्रष्टाचारियों' के खिलाफ कार्रवाई के जो दावे किए थे, वे हवा-हवाई साबित हुए। अगर आज वे सत्ता पा जाएं तो अपने शब्दों पर कायम नहीं रहेंगे और फौज का गुणगान करने लगेंगे। इमरान के समर्थकों ने कोर कमांडर का घर फूंकने समेत कई इलाकों में खूब आगजनी की है। यह पाकिस्तानी फौज के लिए सबक है कि दूसरों के घर में आतंकवाद की आग लगाने का प्रशिक्षण देंगे तो एक दिन आपका ही घर भस्म हो जाएगा।

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