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बड़ी जीत, बड़ी ज़िम्मेदारी

शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, कृषि, रोजगार, अपराध नियंत्रण, पारदर्शिता समेत कई क्षेत्र हैं, जिनकी ओर बहुत गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है

बड़ी जीत, बड़ी ज़िम्मेदारी
ऐसा तंत्र विकसित करें कि बड़े शहरों से लेकर दूर-दराज के इलाकों तक के लोग अपनी आवाज सरकार तक आसानी से पहुंचा सकें

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत हासिल कर ली। यूं तो ज़्यादातर एग्जिट पोल्स में उसे बढ़त मिलने का अनुमान लगाया जा रहा था, लेकिन इस पार्टी ने 135 सीटों का आंकड़ा छू लिया। यह स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि अगर जीत बड़ी है तो जिम्मेदारियां भी बड़ी हैं। 

कर्नाटक में मतदान के दिन से ऐसे भी कयास लगाए जा रहे थे कि अगर साल 2018 जैसी स्थिति दोबारा पैदा हो गई तो राज्य की सियासत का रुख क्या होगा। हालांकि इस बार जनता-जनार्दन ने ऐसी कोई स्थिति पैदा ही नहीं होने दी। उसने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत देकर बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी है। 

अब यथाशीघ्र जनकल्याण और विकास से संबंधित उन वादों को धरातल पर उतारा जाए, जिनका जिक्र कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में किया है। अब यह तर्क भी नहीं चलेगा कि बहुमत नहीं था और गठबंधन की कुछ विवशता थी। जनता ने आपको ऐसी विवशता से मुक्त रखते हुए विजयश्री का आशीर्वाद दिया है। अब आगामी पांच वर्षों का खाका तैयार किया जाए। 

शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, कृषि, रोजगार, अपराध नियंत्रण, पारदर्शिता समेत कई क्षेत्र हैं, जिनकी ओर बहुत गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। जैसा कि प्राय: चुनावी माहौल में होता है, कर्नाटक के इन विधानसभा चुनावों में भी नेताओं के बीच खूब शब्दबाण चले, आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए, कभी नेतागण अपनी वाणी से मर्यादा का उल्लंघन करते नजर आए। 

क्या ही अच्छा हो अगर अब हर पार्टी की ओर से एकसाथ यह बयान जारी किया जाए कि 'चुनावी माहौल में हमारे शब्दों या कार्यों से किसी को भी कष्ट पहुंचा हो तो हम क्षमाप्रार्थी हैं ... हम मनुष्य हैं ... हमसे ग़लतियां हो सकती हैं।'

प्राय: पार्टियां उन मतदाताओं के प्रति आभार जता देती हैं, जिन्होंने उनके पक्ष में वोट डाले थे, लेकिन अपने नेताओं के कठोर वचनों के लिए क्षमा मांगने से परहेज करती हैं। 'स्वदोष-दर्शन' एवं 'क्षमा-याचना' की यह परंपरा होनी चाहिए। अगर श्रीराम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक, गांधी ... के देश में यह नहीं होगी तो कहां होगी? 

इन चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस के खेमे में खुशी की लहर होना स्वाभाविक है, लेकिन इस पार्टी के नेता ध्यान रखें कि विजय के साथ विनम्रता आनी चाहिए। जिस वृक्ष पर फल लगे हों, उसकी शाखाएं झुक जाती हैं। कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने कर्नाटक संगठन में 'वीआईपी' कल्चर न पनपने दे। प्राय: सियासी हलकों में यह माना जाता है कि जो जितना बड़ा नेता होता है, वह जनता से उतना ही दूर होता है। 

यह रीति किसी नेता की 'प्रतिष्ठा' में तो कुछ बढ़ोतरी कर सकती है, लेकिन सरकार और संगठन को नुकसान पहुंचाती है। इससे बचना जरूरी है। कांग्रेस कर्नाटक की जनता से जुड़ाव रखे, उसकी समस्याएं सुने और उचित समाधान भी करे। सत्ता मिल गई तो अब सियासी गलियारों में इतने व्यस्त न हो जाएं कि जनता की आवाज धीमी सुनाई देने लगे। यह सत्ता जनता के आशीर्वाद से ही मिली है, इसलिए जनहित को आगे रखकर उससे संवाद बनाए रखें। 

ऐसा तंत्र विकसित करें कि बड़े शहरों से लेकर दूर-दराज के इलाकों तक के लोग अपनी आवाज सरकार तक आसानी से पहुंचा सकें। सत्ता पक्ष में अहंकार कहीं न आए। 'मैं' नहीं, 'हम' की भावना हो। भाजपा को भी चाहिए कि वह इस बात पर मंथन करे कि उसके प्रयासों में ऐसी कौनसी कमियां रह गईं कि इस बार जनता ने उसे जिम्मेदारी नहीं सौंपी? 

वह सजग विपक्ष का कर्तव्य निभाए। सरकार को उसके वादे याद दिलाती रहे और जब कभी ऐसा हो कि जनता की आवाज समुचित ढंग से नहीं सुनी जा रही है, तो वह उसके स्वर को शक्ति दे। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों का उद्देश्य कर्नाटक की जनता का कल्याण और कर्नाटक का विकास होना चाहिए।

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