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इन्सानियत का दोस्त

जैसे ही भूकंप की ख़बर आई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संवेदनाएं प्रकट करते हुए भारतीय दल को रवाना कर दिया

इन्सानियत का दोस्त
तुर्किये में भारतीय बचाव दल के सदस्यों का स्थानीय लोग जिस तरह आभार जता रहे थे, वह अद्भुत है

तुर्किये में भूकंप से भारी तबाही के बीच दुनियाभर में अच्छे शब्दों के साथ जिसकी चर्चा है, वह है- भारतीय बचाव एवं राहत दल। तुर्किये ने भी नहीं सोचा होगा कि इस मुश्किल वक्त में उसके लिए भारत इतना बड़ा मददगार बनकर सामने आएगा। उसके राष्ट्रपति रेसप तैयप एर्दोगन जिस तरह पाकिस्तान के साथ 'यारी निभाने' के लिए उसके सुर में सुर मिलाते रहे हैं, उन्हें भी जरूर अहसास हुआ होगा कि कौन इन्सानियत का दोस्त है और कौन उसका दुश्मन है। 

जैसे ही भूकंप की ख़बर आई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संवेदनाएं प्रकट करते हुए भारतीय दल को रवाना कर दिया। भारतीयों ने तुर्की पहुंचकर जो हाल देखा, वह सन्न कर देने वाला था। हर कहीं ध्वस्त हुईं इमारतें, बिलखते लोग, चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल! इन बचाव कर्मियों ने तुर्किये वासियों की सांसों की हिफाजत के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी, जिसके लिए इनकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। 

अलग देश में अलग परिवेश के बीच भूकंप से उपजे हालात की चुनौती तो थी ही, मौसम भी कड़ा इम्तिहान ले रहा था। भारतीय दल अपने कर्त्तव्य के लिए इतने समर्पण भाव से जुटा था कि नहाने, खाने, पीने जैसी बुनियादी जरूरतों में भी कटौती कर दी, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके।

जब केदारनाथ धाम में प्रकृति के प्रकोप से लोगों की जानें गई थीं तो तुर्किये समेत कुछ देशों में क्या-क्या नहीं कहा गया था। खैर, यह वक्त इन बातों का नहीं है और भारत ने ऐसी टिप्पणियों का उनकी ही भाषा में जवाब देने से परहेज किया है। भारत बुराई का जवाब भलाई से देता है।

तुर्किये में भारतीय बचाव दल के सदस्यों का स्थानीय लोग जिस तरह आभार जता रहे थे, वह अद्भुत है। बचाव दल का वहां जाना, कैंप स्थापित करना, लोगों को मलबे से निकालना, चिकित्सा सहायता देना ... यह सब इतना मुश्किल काम है, जिसके लिए बहुत धैर्य और सहनशीलता की जरूरत होती है। प्राय: ऐसे समय में स्थानीय लोगों का सरकारी मशीनरी पर आक्रोश फूट पड़ता है, उनकी कई शिकायतें होती हैं। ऐसे में जितना जल्दी हो, लोगों तक पहुंचना होता है। 

यहां भारतीय बचाव दल ने बहुत फुर्ती दिखाई। ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जब किसी को बड़ी मुश्किल के बाद मलबे से निकाला गया। बाहर आने पर उसे पता चला कि उसकी जान बचाने वाला एक भारतीय है, तो उसने उसके हाथ चूम लिए। किसी व्यक्ति के पांव की हड्डी टूट गई, उसका ऑपरेशन हुआ। फिर उसे जानकारी मिली कि उसका इलाज भारतीय डॉक्टर ने किया है, तो उसने बड़े ही सम्मान में अपना सिर झुका दिया। 

तुर्किये में सबसे ज्यादा फजीहत पाकिस्तान की हो रही है। जब उसने देखा कि भारत की चहुंओर तारीफ होने लगी है तो ईर्ष्यावश कुछ ऐसा करने की सोचने लगा, जिससे उसकी भी थोड़ी-बहुत बड़ाई हो जाए। पाक प्रधानमंत्री ने तुर्किये जाने की जिद की, लेकिन वहां से टका-सा जवाब आ गया। फिर मन मसोसकर 'मदद' के तौर पर कुछ टेंट भेजे, ताकि भूकंप पीड़ित इनमें कुछ दिनों के लिए अस्थायी निवास बना लें। 

जब ये टेंट तुर्किये पहुंचे और वहां के अधिकारियों ने इन्हें खोलकर देखा तो उन्होंने भी माथा पीट लिया। दरअसल पाकिस्तान ने वे ही टेंट भेज दिए, जो पिछले साल बाढ़ आने पर तुर्किये ने पाकिस्तानी जनता की मदद के लिए भेजे थे। बस, उन पर पाक सरकार का स्टिकर लगा दिया। बाकी सब पुराना माल था। 

यह ख़बर तुर्किये के अलावा पाकिस्तानी समाचार चैनलों पर आ गई तो इस्लामाबाद की खूब किरकिरी हुई। तुर्किये को भी भलीभांति समझ में आ गया कि इन तिलों में तेल नहीं है!

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