भारतीय मूल के नील मोहन को यूट्यूब का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बनाया जाना निस्संदेह उनकी बहुत बड़ी सफलता है। यह भारत के लिए भी गर्व की बात है। आज भारतीय प्रतिभाएं दुनियाभर में छाई हुई हैं। अमेरिका की कई दिग्गज कंपनियों के सीईओ, वरिष्ठ पदों पर भारतीय बैठे हैं। यूरोप, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत ... हर जगह भारतीय प्रतिभाओं के चर्चे हैं।
गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां, जिनका कुल मूल्य कई देशों की जीडीपी से ज्यादा है, की कमान भारतवंशियों के हाथों में है। इस कड़ी में अब एक और नाम नील मोहन का जुड़ गया है। एलन मस्क द्वारा ट्विटर का अधिग्रहण किए जाने से पहले भारतीय मूल के पराग अग्रवाल उस कंपनी की बागडोर संभाले हुए थे।
ये प्रतिभाएं आज जिन क्षेत्रों में कार्यरत हैं, निस्संदेह भारतीय ज्ञान-विज्ञान की पताका फहरा रही हैं। इनसे लाखों-करोड़ों युवाओं को प्रेरणा मिलती है कि अगर वे मेहनत करेंगे तो एक दिन किसी बड़ी कंपनी के सीईओ बनेंगे। अब इसका दूसरा पहलू देखना चाहिए। भारत में जन्मीं, भारत में पलीं, बढ़ीं और भारत में पढ़ीं ये प्रतिभाएं यहां ऐसा कमाल क्यों नहीं दिखा पातीं? भारत के पास विशाल बाज़ार है, मांग है, क्रयशक्ति है।
जब अमेरिका या किसी अन्य देश से कोई कंपनी यहां आती है तो देखते ही देखते बाज़ार पर छा जाती है। उसमें भारतवंशी कर्मचारी, अधिकारी महत्त्वपूर्ण पदों पर होते हैं। वे उस कंपनी को नित नई बुलंदियों तक लेकर जाते हैं। हम इन प्रतिभाओं को ऐसा वातावरण क्यों नहीं उपलब्ध करवा सके कि ये भारत में रहकर इतनी बड़ी कंपनी का निर्माण कर लेतीं?
आज तकनीक आधारित जो कंपनियां दुनिया में बड़ा नाम रखती हैं, उनमें से ज्यादातर अमेरिका की धरती से उपजी हैं। बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग, एलन मस्क ... जैसे लोग कोई खानदानी रईस या कारोबारी नहीं थे। ये मध्यम वर्ग से निकले थे। इनमें से कई तो ऐसे हैं, जिनके पास विश्वविद्यालय की शिक्षा नहीं है, लेकिन वे पीएचडी धारकों के बॉस हैं। उनके पास संबंधित विषय का ज्ञान है।
वास्तव में अमेरिका को अवसरों की धरती यूं ही नहीं कहा जाता। कारोबार करना, कारोबारियों से प्रेरणा लेना, यह उनकी संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। वहां जिस युवा में काबिलियत होती है, वह कारोबार करता है। अमेरिका में कई कामयाब कारोबारियों को आज दुनिया जानती है। निस्संदेह भारतीय समाज ने प्रतिभाएं तो बहुत पैदा कीं, लेकिन वैसा वातावरण नहीं बना सका, जो इन प्रतिभाओं को कामयाब कारोबारी के तौर पर उभरने का अवसर देता। यहां आज भी वही परिपाटी चली आ रही है कि पढ़ो, लिखो और सरकारी नौकरी पकड़ लो; हर महीने की तय तारीख को तनख्वाह लो और सुकून से रहो। पड़ोसियों और रिश्तेदारों में रौब रहेगा, सो अलग!
निस्संदेह सरकारी नौकरी भी देशसेवा का एक जरिया है। सरकारी नौकरी की तैयारी से लेकर इसे निभाने तक बहुत मेहनत लगती है। यहां सवाल सरकारी या निजी क्षेत्र की नौकरी का नहीं, सोच का है। हम युवाओं में यह सोच क्यों नहीं पैदा कर पाए कि आप कारोबार भी कर सकते हैं, बहुत लोगों को रोजगार दे सकते हैं, बहुत कामयाब हो सकते हैं? हमारी सरकारें ऐसा वातावरण क्यों नहीं बना पाईं कि हमारे युवा यहीं रहकर दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन, सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट, सबसे बड़ा मैसेजिंग ऐप बनाते?
हाल में केंद्र सरकार द्वारा उद्यमिता को बढ़ावा देने के फैसलों के कारण स्टार्टअप्स की संख्या में बढ़ोतरी जरूर हुई है, लेकिन यह काम तीन दशक पहले शुरू हो जाता तो हम बहुत आगे होते। खैर, देर आए, लेकिन दुरुस्त आए। आज हम अपनी क्षमताओं को अच्छी तरह परख चुके हैं। अब देश में उद्यमिता को भरपूर बढ़ावा दिया जाए, युवाओं को प्रोत्साहन दिया जाए। जब उचित वातावरण का निर्माण कर देश की प्रतिभाओं का उपयोग देश के लिए होगा तो निश्चित रूप से यहां भी आशानुकूल परिणाम आएंगे।