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सर्वधर्म समभाव

भारतवासियों के लिए 'सर्वधर्म समभाव' और 'वसुधैव कुटुंबकम्' सामाजिक जीवन का कितना बड़ा अभिन्न हिस्सा है

सर्वधर्म समभाव
जब दुनियाभर में यहूदियों को सताया जा रहा था, तब भारतवासियों ने उन्हें हृदय से लगाया था

धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर आधारित सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस (सीपीए) की रिपोर्ट में भारत को विश्व का बेहतरीन देश करार देना स्वाभाविक है। इसके लिए किसी किस्म के आंकड़े की खास जरूरत भी नहीं है। 

सर्वविदित है कि भारत में हर नागरिक के समान अधिकार हैं, धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता, हर किसी को आजादी है कि वह अपने धर्म का पालन करे। धर्म के आधार पर किसी को अवसरों से वंचित नहीं किया जा सकता। 

वास्तव में सीपीए ने यह खुलासा कर सिद्ध कर दिया कि भारतवासियों के लिए 'सर्वधर्म समभाव' और 'वसुधैव कुटुंबकम्' सामाजिक जीवन का कितना बड़ा अभिन्न हिस्सा है। भारत ने 110 देशों की सूची में अमेरिका, ब्रिटेन समेत उन तमाम देशों को पछाड़ा है, जो दुनिया को अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर उपदेश देते हैं। 

निस्संदेह भारतीय संविधान अल्पसंख्यकों के अधिकारों की पैरवी करता है। उनके हितों की रक्षा करता है। यह भारतवासियों के सामाजिक व्यवहार की अभिव्यक्ति पर कानूनी मुहर है। भारतीय संस्कृति समन्वय और सद्भाव की संस्कृति है, इसलिए वर्तमान संविधान के निर्माण से दशकों, सदियों पहले ऐसी कई घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं, जब हमने किसी का धर्म पूछे बिना उसे शरण दी। 

जब दुनियाभर में यहूदियों को सताया जा रहा था, तब भारतवासियों ने उन्हें हृदय से लगाया था। जब चीन ने तिब्बती बौद्धों का निर्ममता से दमन करना शुरू किया था, तब भारत ने उनके लिए दरवाजे खोले थे। कौन भूल सकता है कि जब 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में बांग्ला भाषी आबादी पर पश्चिमी पाकिस्तान ने जुल्म के पहाड़ तोड़ने शुरू कर दिए थे, तब मदद के लिए सिर्फ भारत आगे आया और बिना किसी भेदभाव के शरणार्थियों को राहत पहुंचाई थी।

सीपीए की इस रिपोर्ट में पाकिस्तान समेत कई देशों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। हालांकि इसमें भी आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि वहां अल्पसंख्यकों के साथ जो बर्ताव हो रहा है, वह जगजाहिर है। भारत में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत विभिन्न उच्च पदों को अल्पसंख्यक समुदाय के लोग सुशोभित कर चुके हैं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को जनता से कितना आदर एवं प्रेम मिला था! यह बताता है कि भारत और भारतीयता क्या है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान ... आदि देशों में ऐसा एक उदाहरण हो तो कोई बताए। ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा। 

निस्संदेह भारत में भी ऐसे तत्त्व मौजूद हैं, जो सामुदायिक सद्भाव के लिए खतरे पैदा करते हैं, (शांति के) रंग में (कलह का) भंग डालने का प्रयास करते रहते हैं। इससे कभी-कभार अप्रिय घटनाएं हो जाती हैं, लेकिन उनके लिए सामाजिक स्वीकार्यता नहीं है। वास्तव में यह सनातन संस्कृति का प्रभाव है, जो सबको साथ जोड़कर चलना सिखाती है। 

भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी ... सभी समुदायों के लोग सद्भाव से रहते हैं, इसके पीछे हमारे ऋषियों, संतों का वह दर्शन है, जिसके प्रभाव से हर कोई विविधता में एकता का सूत्र ढूंढ़ ही लेता है। 

कई देशों के लिए भारत बड़ा रहस्यमय है, क्योंकि इसमें धर्म, भाषा, मान्यता, खानपान, पहनावे, मौसम, ऋतु ... आदि में इतनी अधिक विविधता है कि इसे समझ पाना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है, जबकि भारतवासियों के लिए यह सबकुछ बहुत आसान है। इसलिए जब वे विदेश जाते हैं तो वहां की संस्कृति के साथ अपनत्व का संबंध जोड़ लेते हैं। 

निस्संदेह सीपीए की यह रिपोर्ट उन देशों, सरकारों, संगठनों को भी करारा जवाब है, जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर भारत के बारे में दुष्प्रचार करते रहते हैं।

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