उच्चतम न्यायालय ने 4:1 के बहुमत से फैसला देकर नोटबंदी की वैधता पर उठने वाले सभी सवालों पर विराम लगा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर, 2016 को की गई वह घोषणा इतिहास में हमेशा याद रखी जाएगी।
निस्संदेह नोटबंदी का उद्देश्य कालाधन, भ्रष्टाचार, नकली नोटों के प्रसार, हवाला समेत अर्थतंत्र से जुड़ी कई बुराइयों पर चोट करना था। इसके लिए देश की आम जनता ने खुले दिल से प्रधानमंत्री का साथ दिया था। लोग बैंकों के सामने घंटों कतारों में खड़े रहे, लेकिन उनके मन में विश्वास था कि प्रधानमंत्री ने यह फैसला उनके आने वाले कल की बेहतरी के लिए लिया है।
कुछ भ्रष्टाचारी उस समय भी दांव खेलने से बाज़ नहीं आए। देश ने यह भी देखा कि कैसे पद और प्रभाव का इस्तेमाल कर उन्होंने अपना 'काम निकलवाना' चाहा। उनमें कई पकड़े भी गए। नोटबंदी के उन उद्देश्यों में से कितने सफलतापूर्वक पूरे हुए और कितने नहीं हुए, उन पर बहस होती रहेगी, होनी भी चाहिए। हमें अपनी उपलब्धियों और कमियों, दोनों से सीखना चाहिए। इस से भविष्य को बेहतर बनाने में आसानी होगी।
उच्चतम न्यायालय ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाएं खारिज की हैं। इससे पहले उनके हर तर्क को ध्यान से सुना, जिसके बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि नोटबंदी पूरी तरह वैध थी। अब सरकार को चाहिए कि नोटबंदी के जो उद्देश्य आशानुकूल ढंग से पूरे नहीं हुए थे, उनके लिए अन्य कानूनी तरीके अपनाए। उदाहरण के लिए, नोटबंदी के बड़े उद्देश्यों में से एक यह भी था कि कालेधन का तंत्र ध्वस्त किया जाए। इसी तरह भ्रष्टाचार और नकली नोटों का प्रसार बड़ी समस्याएं हैं। इन पर काबू पाने के लिए प्रभावी तरीके अपनाए जाएं।
नोटबंदी के दिनों में कुछ समय के लिए रिश्वतखोरी की घटनाएं कम पढ़ने-सुनने को मिलीं, लेकिन जैसे ही 500 और 2,000 रुपए के नए नोट प्रसार में आए, भ्रष्टाचारियों ने फिर रिश्वत का खेल शुरू कर दिया। पहले पुराने नोटों में रिश्वत लेते थे, फिर नए नोटों में लेने लगे। हाल के वर्षों में एजेंसियों द्वारा छापेमारी में जहां भी भारी मात्रा में नकदी मिली, वहां 500 और 2,000 रुपए के नोट काफी तादाद में मिले हैं। कालेधन को सफेद करने का 'खेल' भी जारी है।
हालांकि ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाइयां हो रही हैं, लेकिन इनमें और तेजी लाने की जरूरत है। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार जड़ जमाए बैठा है। आम जनता को वाजिब कामों के लिए भी रिश्वत देनी पड़ रही है। निस्संदेह प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी का फैसला लिया था तो उनके मन में स्वच्छ अर्थव्यवस्था की रूपरेखा थी। इतना बड़ा फैसला लागू करना बहुत मुश्किल था, लेकिन देश की जनता ने प्रधानमंत्री के आह्वान पर पूरा भरोसा किया।
उस फैसले को धरातल पर लागू करने के तरीकों पर सवाल उठाए जा सकते हैं, लेकिन देशवासी इस पर एकमत हैं कि फैसले के पीछे प्रधानमंत्री की नीयत पाक-साफ थी। अगर ऐसा न होता तो बैंकों के सामने करोड़ों की आबादी धैर्यपूर्वक नहीं खड़ी रहती। नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट में आशातीत वृद्धि हुई है। कोरोना काल में यह वरदान सिद्ध हुआ। तकनीक के इस स्वरूप ने बिजली-पानी के बिल, टिकट बुकिंग समेत कई सुविधाओं के लिए लगने वाली कतारें छोटी या खत्म कर दी हैं। अब फुटपाथ पर दुकान लगाने वाला भी डिजिटल पेमेंट स्वीकार करता है। सरकार डिजिटल पेमेंट को अधिक सुरक्षित बनाने के लिए प्रभावी कदम उठाए।
यह भी देखा जा रहा है कि कुछ अपराधी इसका दुरुपयोग कर लोगों के खून-पसीने की कमाई उड़ा रहे हैं। इसके अलावा सरकारी दफ्तरों के कामकाज में और पारदर्शिता लाई जाए। जनता के काम अटकाने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों पर सख्ती की जाए; भ्रष्टाचारियों को कठोर दंड दिया जाए। कालाधन और नकली नोटों के तंत्र पर चोट की जाए। नोटबंदी के उद्देश्यों को पूरा करने में सहयोग के लिए जनता हमेशा तैयार है।