गुरु ही वह रास्ता होता है जो हमें परमात्मा तक पहुंचाता है: साध्वी तत्वत्रयाश्री

बगैर गुरु ज्ञान प्राप्ति संभव ही नहीं है


बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के मागड़ी रोड स्थित सुमतिनाथ जैन संघ में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वीश्री तत्वत्रयाश्रीजी व गोयमरत्नाश्रीजी ने अपनी प्रवचन श्रंखला में सिन्दूर प्रकरण ग्रंथ का वाचन करते हुए कहा कि जीवन मे गुरु का विशेष महत्व है। 

अरिहंत प्रभु हमारे तीर्थंकर होने के साथ साथ हमारे गुरु भी है जिन्होंने हमें धर्म का ज्ञान कराया। गुरु वो प्रसाद होते हैं वे जिसके भाग्य में हो उसे कभी कुछ मांगने की आवश्यकता ही नहीं रहती है। पिता पुत्र का संबंध तो खून का होता है लेकिन गुरु शिष्य का संबंध हृदय का होता है। तरंग का होता है। 

बगैर गुरु ज्ञान प्राप्ति संभव ही नहीं है। हर व्यक्ति की मंजिल जीवन में परमात्मा को पाने की होती है, इसके लिए वह अनेक प्रकार से जतन करता है लेकिन गुरु ही वह रास्ता होता है जो हमे परमात्मा तक पहुंचाता है। गुरु शिष्य का संबंध महल और सीढ़ी जैसा होता है। 

जिस प्रकार श्रद्धा के महल में पहुंचने के बाद सीढ़ियों का कोई महत्व नहीं होता वैसे ही गुरु और शिष्य का संबंध भी महल और सीढ़ी जैसा होता है। अगर आप गुरु के पास पहुंच गए तो फिर आप गुरु के हो जाते हैं। जीवन मे गुरु की उपस्थिति प्रकाश के तरह होती है जिनके आते ही सारे संशय के अंधकार समाप्त हो जाते है। 

गुरु की कृपा पाने के लिए शिष्य का पात्र होना भी जरूरी है। गुरु शिष्य का मिलन अनोखा होता है। गुरु के गुणों को नापना मुश्किल कार्य है। जीवन अपने गुरु को सोच समझकर अर्पण करो। गुरु शिष्य का मिलन अनोखा होता है। 

इसलिए कभी भी गुरु की अंगुली मत पकड़ो बल्कि गुरु को अंगुली पकड़ा दो, क्योंकि हमसे कभी भी अंगुली छूट सकती है गुरु से नही। गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। इसीलिए गुरु को ज्ञान का पुंज कहा जा सकता है। 

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