मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि वर्ष १९९३ के सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में अभिनेता संजय दत्त को पांच साल की कैद की सजा पूरा होने से आठ महीने पहले ही जेल से निकल जाने देने में उसे राज्य सरकार की कोई गलती नहीं मिली। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार गृह विभाग के वैध दस्तावेजों की मदद से इस मामले में निष्पक्षता के अपने दावे की पुष्टि करने में सफल रही।पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति में अदालत संजय दत्त को सजा में छूट तथा पुणे की यरवदा जेल में कारावास के दौरान उन्हें बार बार दिए गए पैरोल तथा अन्य छुट्टियों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका का निस्तारण किया जाता है। पीठ ने कहा, हमें राज्य सरकार के गृह विभाग द्वारा सौंपे गए रिकार्ड और उसके स्पष्टीकरण में कहीं कोई अंतर्विरोध नहीं मिला। विवेकाधिकार का कोई उल्लंघन सामने नहीं आया। जनहित याचिका में दावा किया गया है कि कई ऐसे कैदी हैं जिन्होंने अनुकरणीय आचरण का परिचय दिया लेकिन संजय दत्त एकमात्र ऐसे थे जिनका जेल प्रशासन ने पक्ष लिया। राज्य सरकार ने इस आरोप से इन्कार किया।दत्त को वर्ष १९९३ के सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में एके-५६ राइफल रखने और उसे नष्ट करने को लेकर दोषी ठहराया गय था। उन्होंने जेल में बतौर विचाराधीन कैदी एक साल चार महीने तथा सजायाफ्ता कैदी के तौर पर ढाई साल जेल में गुजारे। इस ढाई साल के दौरान वह पैरोल और अन्य छुट्टी पर पांच महीने से अधिक समय जेल से बाहर रहे। वह आठ महीने पहले ही २५ फरवरी, २०१६ को हमेशा के लिए जेल से बाहर आ गए क्योंकि राज्य सरकार ने जेल में उनके अनुकरणीय आचरण को लेकर उनकी सजा कम कर दी थी।
संजय दत्त की समयपूर्व रिहाई की अनुमति में महाराष्ट्र सरकार ने कोई अनियमितता नहीं की : न्यायालय
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