विश्वगुरु का स्वप्न

पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनसे भर्ती परीक्षाओं पर सवाल उठे थे


हरियाणा में ग्यारह हजार नए शिक्षकों की भर्ती की घोषणा न केवल बेरोजगार अभ्यर्थियों, बल्कि लाखों विद्यार्थियों के लिए भी राहत की खबर है। इससे राज्य में रोजगार के अवसरों का सृजन होगा। साथ ही सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की पढ़ाई सुचारु होगी। राज्य में कई स्कूल ऐसे हैं, जहां पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। हालांकि अब अभ्यर्थियों के अलावा सरकार के लिए भी परीक्षा की घड़ी है कि वह बिना किसी अनियमितता और अवरोध के परीक्षा कराए और जो सफल हो जाएं, उन्हें समय पर नियुक्ति दे।

पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनसे भर्ती परीक्षाओं पर सवाल उठे थे। एक मुद्दा कुछ सरकारी स्कूलों को बंद करने के नाम पर जारी सियासत का भी है। चूंकि राज्य में शिक्षकों की कमी के कारण इस पर बयानबाजी को बढ़ावा मिला है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब इस पर विराम लगेगा।

वास्तव में सरकारी स्कूलों की स्थिति पूरे देश में कमोबेश एक जैसी है। यहां पद वर्षों खाली रहते हैं। शिक्षक पर्याप्त न होने के बावजूद विद्यार्थी तैयारी करते हैं और परीक्षा देते हैं। भर्तियों के नाम पर पार्टियां अपनी सियासी रोटियां सेकती हैं। लाखों बेरोजगार भर्ती का इंतजार करते रहते हैं। जब भर्ती की घोषणा हो जाती है तो रिकॉर्ड आवेदन आते हैं। कोचिंग कारोबार चलता है। रात-दिन की तैयारी और कड़ी मेहनत के बावजूद इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि चयन हो ही जाएगा। बड़ी मुश्किल से परीक्षाएं होती हैं, जिनका आयोजन किसी युद्ध से कम नहीं होता। परिवहन व्यवस्था चरमरा जाती है।

नकल के अलावा पेपरलीक जैसे मामलों ने कई सरकारों की खूब किरकिरी कराई है। फिर किसी न किसी विवाद के नाम पर मामला अदालतों में चला जाता है। अगर यह चरण भी पार हो गया तो परीक्षा परिणाम की घोषणा और फिर नियुक्ति तक काफी समय लग जाता है। इस तरह भारत में शिक्षक बनना अत्यंत संघर्ष भरा कार्य है। नियुक्तियों के नाम पर भी सियासी खेल खूब खेले जाते हैं। हाल में पश्चिम बंगाल में सबने देखा कि किसी तरह शिक्षा व्यवस्था कुछ राजनेताओं के लिए मुनाफे का धंधा बन गई है।

किसी देश का भविष्य कैसा होगा, यह बहुत कुछ उसके शिक्षकों पर निर्भर करता है। जब हमारी शिक्षा व्यवस्था में इतनी खामियां हैं तो हम विश्वगुरु की बात कैसे कर सकते हैं? यह भी विचारणीय है कि नब्बे के दशक बाद सरकारी स्कूलों से मध्यम वर्गीय एवं निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों का तेजी से मोह भंग हुआ है। आज प्राइवेट स्कूल स्वाभाविक पसंद बन गए हैं। माता-पिता खुद तंगी का सामना कर संतान को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं।

सवाल है- जब सरकारी स्कूल के शिक्षक इतनी मेहनत और जटिल प्रक्रिया से निकलने के बाद इस पद तक पहुंचते हैं तो वे खरा सोना बन जाते हैं, उनका विषय संबंधी ज्ञान बेहतरीन होता है; फिर सरकारी स्कूल अपनी चमक क्यों खो रहे हैं? अतीत में सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी तो देश के शीर्ष पदों तक पहुंचे हैं। अब इस पर गंभीर मंथन होना चाहिए कि सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं के साथ शिक्षण विधियों में नवीनता कैसे लाई जाए, ताकि ये पुनः अपना गौरव प्राप्त करें।

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