आतंकी को अभयदान!

जिस तरह पाकिस्तान आतंकवादियों को दो समूहों - अच्छे आतंकवादी और बुरे आतंकवादी के तौर पर विभाजित करता है, लगभग वैसा ही रवैया चीन का है


चीन अपनी ज़मीन पर आतंकवादियों को पनपने नहीं देता, क्योंकि वह जानता है कि वे भविष्य में पाकिस्तान की तरह उसकी भी दुर्गति कर देंगे, लेकिन वह ऐसे आतंकवादियों को खुलकर सहयोग कर रहा है, जो भारत या अन्य देशों को नुकसान पहुंचाते हैं। उसने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी साजिद मीर को काली सूची में डालने के अमेरिका और भारत के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में अवरुद्ध कर साबित कर दिया कि वह भी पाक की तरह आतंकवादियों को लेकर दोहरा रवैया रखता है।

जिस तरह पाकिस्तान आतंकवादियों को दो समूहों - अच्छे आतंकवादी और बुरे आतंकवादी के तौर पर विभाजित करता है, लगभग वैसा ही रवैया चीन का है। चूंकि साजिद मीर जैसे आतंकवादी भारत के लिए चुनौती हैं, इसलिए वह न केवल उन्हें ‘अभयदान’ देता है, बल्कि आर्थिक सहायता भी करता है। आतंकवादी समूहों के पास चीन में निर्मित पिस्टल व ग्रेनेड आदि मिलते रहे हैं। आतंकवादियों की जो फसल लहलहा रही है, वह उनमें खाद-बीज डाल रहा है, ताकि वे देर-सबेर भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बनें और भारत सरकार इन्हें काबू में करने पर ही पूरा ध्यान दे, आर्थिक विकास संबंधी गतिविधियां धीमी पड़ जाएं।

चीन ने साजिद मीर को एक तरह से जीवनदान देकर मानवता के विरुद्ध अपराध किया है। यह आतंकवादी  2008 के मुंबई हमलों का मुख्य साजिशकर्ता है। चीन वैश्विक मंचों पर मानवता, परस्पर सहयोग, जन-कल्याण के नाम पर कितनी ही लुभावनी बातें कर ले, वह मौका पाने पर इन आदर्शों के खिलाफ आचरण करने से बाज़ नहीं आता।

चीन को याद रखना चाहिए कि आज वह जिन आतंकवादियों को बचा रहा है, वे भविष्य में उसकी ज़मीन पर जाकर नागरिकों का खून बहा सकते हैं। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में आतंकवाद की जो पौध तैयार की थी, आज वह विषवृक्ष बनकर उसे ही खत्म करने को आमादा है। उसी तरह चीन अभी इस बात को लेकर मन ही मन हर्षित हो सकता है कि उसके दांव-पेच से एक आतंकवादी संयुक्त राष्ट्र में बच गया, लेकिन ऐसा समय भी आ सकता है, जब आतंकवाद की यह आग पाकिस्तान से शिंजियांग और बीजिंग पहुंच सकती है।

यूं तो आतंकवाद को लेकर अमेरिका का रवैया भी दिखावेबाजी से भरा हुआ है, लेकिन वह कभी-कभार सख्त कदम उठा लेता है। उसने साजिद मीर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 अलकायदा प्रतिबंध समिति के तहत वैश्विक आतंकवादी के तौर पर काली सूची में डालने की कोशिश की तो चीन ने इस प्रस्ताव पर रोक लगा दी। चूंकि आतंकवाद पर भारत का रवैया बिल्कुल साफ है, इसलिए उसने प्रस्ताव का समर्थन किया, जो उचित था। पचास लाख डॉलर का इनामी साजिद मीर इस प्रतिबंध के दायरे में आ जाता तो उसकी संपत्ति कुर्क होती और यात्रा समेत कई गतिविधियों पर पाबंदियां लगतीं। इसके अलावा पाकिस्तान पर दबाव पड़ता, उसकी छवि और धूमिल होती। वह एफएटीएफ में अटका हुआ है, जहां उस पर कड़ा शिकंजा कसने में मदद मिलती।

हालांकि आर्थिक रूप से तबाह पाक ने उसे जून में ही आतंकवाद के वित्त पोषण के मामले में 15 साल से ज्यादा की सजा सुनाई थी, लेकिन यह भी एक नाटक से ज्यादा कुछ नहीं था, जिसकी स्क्रिप्ट रावलपिंडी में लिखी गई थी। पाक को कर्ज चाहिए, जिसके लिए उसे यह दिखाना होता है कि अब वह आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। पाक अधिकारी यह दावा कर चुके हैं कि मीर की मौत हो गई है, लेकिन इस पर किसी देश को यकीन नहीं है।

चीन पूर्व में भी आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने के प्रयासों को अवरुद्ध करता रहा है। कोई आश्चर्य नहीं, अगर वह इसी कोशिश को भविष्य में दोहराता रहे। इससे हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। भारत को आतंकवादियों के खिलाफ इसी तरह कठोर रुख कायम रखना चाहिए। साथ ही सेना और खुफिया एजेंसियों के आधुनिकीकरण पर जोर देना चाहिए, ताकि जो आतंकी तत्त्व चुनौती दे, वह दंडित किया जाए।

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