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आवाज़ उठाएं

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भारतीय मूल के लोग, चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी या अन्य समुदाय के, वे किसी भी देश में जाते हैं तो वहां आसानी से घुल-मिल जाते हैं


ब्रिटेन के लेस्टर में भारतीय समुदाय के खिलाफ पाकिस्तानी उपद्रवियों द्वारा हिंसा, हिंदू धर्म के परिसरों और प्रतीकों के साथ तोड़फोड़ की घटना अत्यंत निंदनीय है। ब्रिटेन जिसके बहुसांस्कृतिक ढांचे और सद्भाव की मिसाल दी जाती थी, वहां हाल के वर्षों में नफरत का ग्राफ बढ़ा है। चाकूबाजी, हमले, धमाके जैसी घटनाओं के बावजूद इस देश के नीति-निर्माताओं ने आंखें मूंद रखी हैं।

प्रायः ऐसी हर घटना के तार पाकिस्तान से जुड़ जाते हैं! हमलावर या तो पाकिस्तानी मूल का होता है या उसने वहां जाकर प्रशिक्षण लिया होता है। जहां पाकिस्तानी कट्टरपंथियों के चरण पड़ते हैं, वहां बंटाधार होता है! ताजा घटना को भी इसी का हिस्सा मानना चाहिए।

भारतीय मूल के लोग, चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी या अन्य समुदाय के, वे किसी भी देश में जाते हैं तो वहां आसानी से घुल-मिल जाते हैं। भारत की सामाजिक संरचना उन्हें मानसिक रूप से तैयार कर देती है, जिससे उन्हें अन्य धर्मावलंबियों की आस्था को स्वीकार करने और उसका सम्मान करने में कोई कठिनाई नहीं होती। वे उन देशों में शांतिपूर्वक रहकर उनकी प्रगति में योगदान देते हैं।

इसके ठीक उलट, पाकिस्तानी जिस देश में भी जाते हैं, वहां गलत वजह से चर्चा में रहते हैं। उनका पासपोर्ट देखते ही एजेंसियों के कान खड़े हो जाते हैं। विदेशी हवाईअड्डों पर पाकिस्तानियों से कड़ी पूछताछ होती है। प्रायः वे न तो उन देशों में घुल-मिल पाते हैं और न सच्चे हृदय से उनकी संस्कृति का सम्मान कर पाते हैं। उन्हें ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि का पासपोर्ट तो चाहिए, लेकिन वे उन देशों के ही टुकड़े करने का ख्वाब संजोए रहते हैं।

चूंकि पाकिस्तान का सामाजिक ढांचा ऐसा है कि उन्होंने अन्य धर्मावलंबी देखे ही नहीं और न उनके त्योहारो, परंपराओं के बारे में ज्यादा जानते हैं, इसलिए वे जब कभी पश्चिमी देशों में जाते हैं तो वहां के बहुसांस्कृतिक समाज में खुद को फिट नहीं कर पाते। इससे कुंठा जन्म लेती है, जो कालांतर में लेस्टर हमलों जैसी घटना के रूप में फूटती है। पाकिस्तानी चाहे अपने मुल्क में रहे या ब्रिटेन में, उसका कमोबेश ब्रेनवॉश हो चुका होता है। खासतौर से उनमें हिंदू समुदाय के प्रति नफरत कूट-कूटकर भरी होती है।

जब वे विदेश में देखते हैं कि हर बड़ी कंपनी का सीईओ भारतीय मूल का शख्स है, हर उच्च अधिकारी भारत से आया है तो उनकी कुंठा और बढ़ जाती है। निस्संदेह भारतीय मूल के लोग बहुत प्रतिभाशाली एवं परिश्रमी हैं। आज वे विदेशों में बड़े-बड़े पदों पर विराजमान हैं तो इसके पीछे उनकी प्रतिभा है, लेकिन यह देखने में आता है कि जब कभी भारतीय मूल के लोगों के हितों और सुरक्षा का सवाल हो और विरोध प्रदर्शन करने की स्थिति आ जाए तो उनमें से बहुत कम लोग आते हैं।

कंपनी के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन और धन कमाना जरूरी है, लेकिन हममें संगठन की भावना भी होनी चाहिए। जब कभी जरूरी हो, भारतीय मूल के लोगों को कानून के दायरे में रहते हुए विरोध प्रदर्शन में भाग लेना चाहिए। अगर आप खुद अपनी आवाज नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा? अपनी सुरक्षा, आत्मसम्मान, पहचान और अधिकारों के लिए विधि सम्मत ढंग से आवाज उठाना अपराध नहीं है।

अगर कोई नफरत के वशीभूत होकर भारतीय समुदाय को निशाना बनाता है और आप खामोश रहेंगे तो अगली बार उसका दुस्साहस बढ़ जाएगा। इसलिए भारतीय मूल के लोग संगठित रहें और कानून का पालन करते हुए उचित मंचों पर अपनी आवाज जरूर उठाएं।

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