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दो टूक संदेश

दो टूक संदेश
ऐसा नहीं है कि इस दौरान कश्मीर में आग लगाकर पाकिस्तान ने खुद के लिए समृद्धि की कोई नई इबारत लिख दी


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बारामूला की जनसभा में पाकिस्तान को दो टूक संदेश भेजकर उचित ही किया कि अब उसके साथ कोई बातचीत नहीं होगी और मोदी सरकार आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगी। वर्तमान परिस्थितियों में भारत सरकार की यह नीति उचित ही है। शाह ने आतंकवाद के उन हिमायतियों को भी बता दिया है कि अब कश्मीरी उनके झांसे में नहीं आएंगे, आतंकवाद का सफाया होकर ही रहेगा।

अब समय आ गया है कि जम्मू-कश्मीर के निवासी गंभीरता से इस पर विचार करें कि इतने वर्षों में कथित ‘आज़ादी’ के नारों ने किसे फायदा पहुंचाया! पत्थरबाजी, हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी ने सिर्फ कुछ स्वार्थी लोगों की सियासत चमकाई है। आम कश्मीरी को इसने भारी नुकसान ही दिया है। घाटी में 1990 से लेकर अब तक 42 हजार लोग जान गंवा चुके हैं। अम्न-सुकून बिगड़ा सो अलग।

अगर इन वर्षों में जम्मू-कश्मीर आतंकवाद और अलगाववाद की आग में न झुलसता, पाकिस्तान के इशारों पर नाचने वाले कुछ किरदार भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चले होते तो यह इलाका पर्यटन के मामले में यूरोप को टक्कर देता। यहां का युवा बेरोजगार न होता। कश्मीर में होटलों की बड़ी शृंखला होती। कश्मीर की वजह से अन्य राज्यों में लोगों केे घर चूल्हा जलता। एक खुशहाल कश्मीर, खुशहाल भारत का निर्माण करता, लेकिन दुर्भाग्य से हमने यह सुनहरा मौका गंवा दिया।

ऐसा नहीं है कि इस दौरान कश्मीर में आग लगाकर पाकिस्तान ने खुद के लिए समृद्धि की कोई नई इबारत लिख दी। वह आर्थिक संकट के बदतरीन दौर से गुजर रहा है। पापकर्म का दंड मिलता ही है, जिसे भोगने के लिए अभी पाकिस्तान को बहुत कुछ देखना होगा।

पूर्ववर्ती सरकारों ने जिस तरह कुछ अलगाववादियों को ‘पुचकारने’ की नीति अपनाई और यहां शासन करने वाले ‘परिवारों के उचित-अनुचित फैसलों पर चुप्पी साधे रखी, इससे वे देश को ब्लैकमेल करने लगे थे। वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि एक नेत्री, जो मुख्यमंत्री तक रहीं और वह तिरंगे को ही ललकारने लग जाए? देश ऐसे नेताओं के बयानों को न तो भूलेगा और न क्षमा करेगा। अपनी सियासी रोटियां सेकने के लिए ये एक तरफ तुष्टीकरण का जाल फेंकते रहे, दूसरी तरफ कश्मीरी पंडितों के उत्पीड़न पर आंखें मूंदे रहे।

ये बीच-बीच में पाकिस्तान से बातचीत पर जोर भी देते रहे। क्या ये इतने मासूम हैं कि इन्हें पाक के मंसूबों की जानकारी नहीं? देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि पाकिस्तान आतंकवादी पैदा करने की फैक्ट्री है। उससे कितने ही सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत कर ली जाए, नतीजे में हमें आतंकवाद ही मिलेगा। शाह ने उचित कहा है कि ‘हम पाकिस्तान से कोई बातचीत नहीं करेंगे, अगर बात करनी होगी तो बारामूला के लोगों से करेंगे, कश्मीर के लोगों से करेंगे।’

अब आतंकवाद को किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। हम पूर्व में भी कह चुके हैं कि भारत की अति उदारता ने पाकिस्तान को उद्दंड बनने का अवसर दिया है। अब भारत के रुख में सख्ती होनी चाहिए। पाकिस्तान को उसकी हरकतों के लिए दंडित करना ही सर्वश्रेष्ठ तरीका है, जिससे जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित हो सकती है। हमारी धरती पर आतंकवाद रूपी रोग का सफाया करने के लिए इंजेक्शन पाकिस्तान को लगाना होगा। इससे कीटाणु (पाकिस्तानी घुसपैठिए/आतंकवादी) काबू में आएंगे। अगर भारत कश्मीर में ही आतंकवाद का उपचार करने में लगा रहा तो रोग पर असर नहीं पड़ेगा। वह तो अपनी असल जगह मौजूद ही रहेगा।

भारत सरकार ने सुरक्षा संबंधी कई चुनौतियों के बावजूद जम्मू-कश्मीर को सड़क, बिजली, पानी, हवाई अड्डे, शिक्षण संस्थान, अस्पताल दिए हैं। एक बार पाक अधिकृत कश्मीर की ओर भी नज़र डालें कि पाकिस्तान की सरकार ने उसे क्या दिया है। वहां मूलभूत सुविधाओं का अता-पता नहीं है। बिजली घंटों गायब रहती है। बिल इतने आ रहे हैं कि चुकाने के लिए दो महीने की तनख्वाह कम पड़ जाए। धीरे-धीरे चीन वहां कब्जा जमा रहा है।

चीन के कर्ज तले दबा पाक आगामी कुछ वर्षों में अपने अवैध कब्जे वाले इलाके के निवासियों को बीजिंग के रहमो-करम पर छोड़ दे तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी। उन्हें विचार करना चाहिए कि पाक ने जिस झूठी आज़ादी के सब्ज-बाग दिखाए हैं, वह उन्हें किस तबाही की ओर लेकर जानेवाली है।

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