स्वात में अशांति

कभी पहाड़ों और खूबसूरत नजारों के लिए मशहूर स्वात आज आतंकवादियों की घाटी के तौर पर जाना जाता है


पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वा के स्वात जिले में हुए आतंकी हमले के बाद जिस तरह आम जनता सड़कों पर उतरी, वह अच्छी पहल है। पाकिस्तानियों को समझना होगा कि भारत और हिंदुओं से नफरत के नाम पर उनके हुक्मरान दिमागों में कट्टरपंथ का जो जहर भरते रहे हैं, वह उन्हें भी नुकसान पहुंचा रहा है। उन्हें अपने देश में होने वाली आतंकवादी घटनाओं का तो विरोध करना ही चाहिए, अन्य देशों में पाक फौज और उसके आतंकवादियों द्वारा अंजाम दी जाने वाली घटनाओं का भी विरोध करना चाहिए। इसी से उनके देश में शांति आएगी। आप दूसरों के घरों में आग लगाकर निश्चिंत नहीं हो सकते। देर-सबेर उसकी लपटें आपके घरों तक भी पहुंचेंगी और वे पहुंच चुकी हैं। 

भारतीय एजेंसियों ने बहुत सतर्कता और सूझबूझ के साथ अपने देश से न केवल खूंखार आतंकवादियों का खात्मा किया है, बल्कि उनके संगठनों पर कड़ा शिकंजा कस रखा है। अब नियंत्रण रेखा पारकर इस ओर आने वाले आतंकवादी या तो वहीं मार गिराए जाते हैं या कुछ दिनों बाद ढेर कर दिए जाते हैं। उनका मारा जाना तय है। वे भारतीय एजेंसियों की पैनी नजर और सुरक्षा बलों की गोली से नहीं बच सकते। इससे आतंकवादी बौखला गए हैं। उनके मंसूबे एक-एक कर फेल हो रहे हैं। लिहाजा उनके पास एक ही रास्ता बचता है कि वे अपनी जमीन पर लोगों को मारना शुरू कर दें। इसी का नतीजा है कि आज आतंकवादी उसी देश के लोगों की हत्या कर रहे हैं, जिन्होंने कभी उन्हें पालने के लिए चंदा दिया था। 

स्वात इलाका इससे बुरी तरह प्रभावित रहा है। कभी पहाड़ों और खूबसूरत नजारों के लिए मशहूर स्वात आज आतंकवादियों की घाटी के तौर पर जाना जाता है। साल 2008 और उसके आसपास के सालों में टीटीपी ने स्वात में भारी तूफान मचाया था। उसने एक-एक कर स्कूलों, दुकानों, सार्वजनिक इमारतों को बम धमाकों से ढहाने का सिलसिला शुरू कर दिया था।

विश्व का उसकी ओर ध्यान तब गया, जब लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज उठाने वाली किशोरी मलाला यूसुफजई को आतंकवादियों ने गोली मार दी थी। इससे पाक फौज पर अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ा, उसे कार्रवाई करनी पड़ी। टीटीपी एक बार फिर इसी कोशिश में है कि वह स्वात पर कब्जा कर ले, लेकिन इस बार लोगों से वैसी सहानुभूति नहीं मिल रही है। 

प्रायः भारत में आतंकवादी घटनाओं पर हर्षित होने वाली पाकिस्तान की जनता को अहसास होने लगा है कि अब इस आग से उनके झुलसने की बारी आने वाली है। इसीलिए वह 40 घंटों तक विरोध प्रदर्शन करती रही। चारबाग तहसील के गुलीबाग इलाके में सोमवार सुबह जब आतंकवादियों ने वैन चालक को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया और दो स्कूली बच्चों को घायल कर दिया तो मलाला के साथ हुई घटना की यादें ताजा हो गईं। बस इस बार वैन चालक इतना खुशकिस्मत नहीं था। इसके बाद भड़के हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। इसमें स्कूल, कॉलेज के विद्यार्थियों और शिक्षकों ने भी भाग लिया। इससे मुल्कभर में इस बहस का शुरू होना स्वाभाविक है कि ऐसा कब तक चलता रहेगा। 

स्थानीय लोग दोषियों की गिरफ्तारी की मांग भले ही करते रहें, लेकिन मसअला इसी से हल होने वाला नहीं है। जब तक पाकिस्तान की धरती से आतंकवाद का समूल नाश नहीं होगा, ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। पाक जनता किसी घटना विशेष के लिए ज़रूर प्रदर्शन करे, लेकिन उसे यह समझना होगा कि आतंकवाद के विषवृक्ष को जड़ समेत उखाड़ना होगा। अन्यथा हाफिज सईद, दाऊद इब्राहिम, सलाउद्दीन, मसूद अज़हर आदि विषैल फल उगते रहेंगे। फिर इनसे जो पौध निकलेगी, वह और अधिक जहरीली, और अधिक घातक होगी। क्या पाकिस्तानी उसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं?

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