हिंदी संवारेगी सेहत

अगर कोई विद्यार्थी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने में खुद को सहज महसूस करता है तो उसे इसकी पूरी स्वतंत्रता है


मध्य प्रदेश में चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई की हिंदी में शुरुआत के बाद सोशल मीडिया पर एक वर्ग कई भ्रांतियां फैलाने में लगा हुआ है। वह इस फैसले को ऐसे पेश कर रहा है कि हिंदी माध्यम से चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई संभव ही नहीं है। लेकिन क्यों? उसके पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं है। बस एक 'तर्क' यह दिया जा रहा है कि चिकित्सा शास्त्र में जो विशेष शब्द हैं, उनका हिंदी अनुवाद कैसे किया जाएगा! इस फैसले के दोनों पक्षों को देखा जाना चाहिए। 

अगर चिकित्सा शास्त्र में विशेष और मुश्किल शब्द हैं तो विद्वानों को इस पर चर्चा करनी चाहिए। जहां जरूरी हों, उनके लिए हिंदी में नए शब्द बनाए जाएं। इससे न केवल हिंदी भाषा समृद्ध होगी, बल्कि चिकित्सा शास्त्र में शोध के नए द्वार खुलेंगे। लेकिन यह कहना न्याय संगत नहीं है कि हिंदी माध्यम से कोई विद्यार्थी चिकित्सक या कुशल चिकित्सक नहीं बन सकता। 

भाषा एक माध्यम है। अगर कोई विद्यार्थी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने में खुद को सहज महसूस करता है तो उसे इसकी पूरी स्वतंत्रता है। वह पढ़ाई कर सकता है। इसी तरह जो विद्यार्थी हिंदी माध्यम से पढ़ाई करना चाहता है, उसके लिए भी यह विकल्प होना चाहिए। उस पर जबरन अंग्रेजी क्यों थोपी जाए? निस्संदेह वर्तमान परिस्थितियों में अंग्रेज़ी का बहुत महत्व है। हर विद्यार्थी को इसमें अवश्य पारंगत होना चाहिए। 

जहां तक ग़ैर-अंग्रेज़ी माध्यम से चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई का प्रश्न है तो यह कोई सार्वभौमिक सत्य नहीं है कि अंग्रेज़ी के बिना चिकित्सक नहीं बन सकते। जर्मनी, इटली, रूस, यूक्रेन, दक्षिण कोरिया, इजराइल समेत दर्जनों देश हैं, जहां उनकी अपनी भाषाओं में इस विषय की पढ़ाई होती है और वहां बहुत अच्छे चिकित्सक बने हैं और बन रहे हैं। और तो और, अपना पड़ोसी चीन स्वभाषा में पढ़ाई कराता है। उसमें कितने ही अस्पताल, मेडिकल कॉलेज आदि ठीक से चल रहे हैं। फिर भारत में क्या समस्या है? हम हिंदी में ऐसा क्यों नहीं कर सकते?

ऐसा तो नहीं है कि चिकित्सा शास्त्र पर किसी विशेष भाषा का ही एकाधिकार है? निस्संदेह अंग्रेजी माध्यम से चिकित्सा शास्त्र में उच्च कोटि के शोध हुए हैं, हो भी रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम से ही भारत के मेडिकल कॉलेजों ने ऐसे चिकित्सक पैदा किए हैं, जिन्होंने देश-दुनिया मेंं नाम कमाया है। उन पर हमें गर्व है। अंग्रेजी माध्यम का महत्व आगे भी रहेगा, लेकिन प्रश्न यह है कि हम यही उपलब्धि हिंदी में क्यों प्राप्त नहीं कर सके? 

इसका सरल-सा उत्तर यह है कि अब तक ऐसे प्रयास ही नहीं हुए। अगर देश को स्वतंत्रता मिलने के साथ ही चिकित्सा शास्त्र की पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद शुरू हो जाता और सरकारें रुचि लेतीं तो अब तक लाखों चिकित्सक इस माध्यम से तैयार हो चुके होते। अगर कोई व्यक्ति हिंदी माध्यम से पढ़ाई कर अच्छा शिक्षक, अच्छा वकील, अच्छा वैज्ञानिक, अच्छा राजनेता, अच्छा वक्ता, अच्छा लेखक और अच्छा प्रशासक हो सकता है तो वह अच्छा चिकित्सक क्यों नहीं हो सकता? बिल्कुल हो सकता है। बस जरूरत इच्छाशक्ति और सही दिशा में मेहनत की है। 

मध्य प्रदेश से शुरू हुई यह पहल अब यहीं तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। हिंदी में श्रेष्ठ अनुवाद के बाद क्षेत्रीय भाषाओं में भी ऐसे प्रयास होने चाहिएं। हालांकि इसमें समय लगेगा। 

हिंदी माध्यम से चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि हमारा अंग्रेजी से कोई विरोध है। इसका अर्थ यह है कि हम अपनी भाषा को अनुवाद प्रक्रिया से समृद्ध बनाएंगे और उन विद्यार्थियों को एक विकल्प उपलब्ध कराएंगे, जो हिंदी में सोचते, समझते, लिखते और पढ़ते हैं; जो हिंदी में सहज हैं। हिंदी का शब्द भंडार अतिविशाल है। अगर चिकित्सा शास्त्र के कुछ और शब्द इसमें शामिल होने के लिए आएंगे तो हिंदी उन्हें भी खुश-खुशी अपनाएगी। हिंदी ने सबको जोड़ा है, सबको अपनाया है।

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