अमेरिकी उपदेश

अमेरिका यह क्यों नहीं देखता कि यूरोपीय देश रूस से कितना तेल, गैस खरीदते हैं?


'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' - ये शब्द अमेरिका पर बिल्कुल सटीक बैठते हैं। नाटो की धौंस और मदद के सब्जबाग दिखाकर यूक्रेन को रूस से भिड़वा दिया। अब अपने चहेते यूरोपीय देशों समेत दूर बैठा तमाशा देख रहा है। सिवाय लंबी-चौड़ी बयानबाजी और उपदेशों के यूक्रेन को कुछ नहीं मिला और न मिलने की संभावना नज़र आती है।

अब भारत को यह कहना हास्यास्पद है कि आप रूस से तेल न खरीदें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच एक घंटे तक चली बैठक के बाद व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी का यह बयान कि 'बाइडन ने स्पष्ट कर दिया है कि रूस से ऊर्जा या अन्य चीज़ों का आयात भारत के हित में नहीं है' - थोथी धमकी है।

अमेरिका यह क्यों नहीं देखता कि यूरोपीय देश रूस से कितना तेल, गैस खरीदते हैं? ऐसे समय में विदेश मंत्री एस जयशंकर का यह कहना उचित ही है कि आप भारत के तेल ख़रीदने से चिंतित हैं लेकिन यूरोप जितना तेल एक दोपहर में ख़रीदता है, उतना भारत एक महीने में भी नहीं ख़रीदता है।' एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री के साथ वॉशिंगटन में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए स्पष्ट कर दिया कि भारत का क्या रुख है।

दरअसल अमेरिका रूस पर पाबंदियों के नाम पर भारत को अपने पाले में करना चाहता है ताकि पुतिन और पूरी दुनिया को सख्त संदेश दे सके कि वह दुनिया की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है। भारत को अमेरिका के दबाव में नहीं आना चाहिए। निस्संदेह भारत शांति का समर्थक है और यह नहीं चाहता कि रूस-यूक्रेन में युद्ध हो। भारत मानवाधिकारों को लेकर प्रतिबद्ध है लेकिन इसके लिए उसकी विदेश नीति क्या होनी चाहिए, यह अमेरिका से सीखने की जरूरत नहीं है।

रूस-यूक्रेन युद्ध दु:खद है। यह अविलंब रुकना चाहिए लेकिन भारत को अपने हित भी देखने हैं। वह रूस के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठा सकता। रूस के साथ पुराने मैत्री संबंध हैं। भारत अरबों डॉलर का सैन्य सामान रूस से आयात करता रहा है। अतीत में जब अमेरिका ने ऐनवक्त पर पलटी मारी तो रूस ही भारत के साथ खड़ा रहा। अब अमेरिका चाहता है कि भारत अपने पुराने रुख में बदलाव करे और यूक्रेन मामले को लेकर पुतिन पर आर्थिक दबाव बनाए।

बाइडन भले ही अन्य स्रोतों से गैस और तेल आपूर्ति में मदद का प्रस्ताव रखें, भारत को अपने पुराने मित्र को नहीं छोड़ना चाहिए। भारत के सामने अपनी चुनौतियां हैं। तेल की बढ़तीं कीमतों से आम जनता परेशान है। इसका असर अन्य चीजों की कीमतों पर दिखाई दे रहा है। महंगाई में इजाफा हो रहा है। अगर इस दौरान तेल की कीमतें और बढ़ती हैं तो उसका असर आम आदमी की ज़िंदगी पर पड़ेगा। भारत को रूस और पश्चिमी देशों के बीच संतुलन साधते हुए आगे बढ़ना चाहिए।

सरकार की नीति से यह स्पष्ट झलकता भी है। भारत ने बिना किसी का नाम लिए यूक्रेन में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता ज़रूर ज़ाहिर की लेकिन खुलकर रूस की निंदा भी नहीं की। अगर अमेरिका रूस को अलग-थलग करना चाहता है तो अपने स्तर पर करे। भारत को इस अभियान का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।

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