सांप्रदायिक हिंसा

यह श्रीराम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक, विवेकानंद, गांधी एवं ऋषियों की भूमि है


देश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं विचलित करती हैं। रामनवमी, हनुमान जयंती से लेकर हर पर्व-त्योहार पर ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जो यह सोचने को विवश करती हैं कि विश्व को शांति और सहिष्णुता का संदेश देने वाले देश में ऐसा क्यों हो रहा है। मध्य प्रदेश के खरगोन से लेकर राजस्थान के करौली, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और कर्नाटक के हुब्बली में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं बताती हैं कि देश में उपद्रवी और अशांति फैलाने वाले तत्व बेखौफ होते जा रहे हैं। समय रहते उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए ताकि एक कड़ा संदेश जाए।

कार्रवाई में इस बात का कोई लिहाज न किया जाए कि उसका ताल्लुक किससे है। यह श्रीराम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक, विवेकानंद, गांधी एवं ऋषियों की भूमि है। यहां किसी को भी उपद्रव, हिंसा, घृणा का प्रसार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। निस्संदेह सांप्रदायिक हिंसा यूं ही नहीं भड़कती। उसे कुछ प्रभावशाली लोगों की हरी झंडी मिली होती है। वे वोटबैंक और तुष्टीकरण के नाम पर आग में घी डालते हैं, लोगों के जज़्बात भड़काते हैं।

रही-सही कसर सोशल मीडिया ने पूरी कर दी। शुरू में यह माना जाता था कि इससे लोग जुड़ेंगे, सकारात्मकता का प्रसार होगा, लेकिन आज देखने में आता है कि यह सुविधा ही बड़ी दुविधा बन गई है। फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सऐप आदि पर घृणास्पद पोस्ट की भरमार है। यह धीमे जहर की तरह है, जो लोगों के मन पर बुरा असर डाल रहा है। फेक न्यूज ने और भ्रम फैला दिया है। अब चार-पांच साल पुराने वीडियो को ताजा बताकर दंगे फैलाना कोई मुश्किल काम नहीं रह गया है।

सरकारों को वोटबैंक से ऊपर उठकर इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करने होंगे। जो भी धार्मिक यात्रा निकले, उसका मार्ग स्पष्ट किया जाए। संपूर्ण वीडियोग्राफी की जाए ताकि प्रशासन के पास इस बात का पुख्ता प्रमाण हो कि गड़बड़ कहां से शुरू होती है। भड़काऊ नारेबाजी करने वालों पर कठोरता बरती जाए। साथ ही ड्रोन से इस बात का पता लगाया जाए कि रास्ते में किन घरों की छत पर पत्थर, बोतलें या ऐसी सामग्री रखी हुई है जिसका इस्तेमाल दंगा भड़काने के लिए किया जा सकता है।

निस्संदेह यह काम कुछ कठिन है लेकिन शांति स्थापना के लिए प्रशासन को करना होगा। आधुनिक टेक्नोलॉजी से उपद्रवियों पर पकड़ मजबूत बनाई जाए। जहां जो लोग अशांति फैलाने की चेष्टा करें, उन्हें कानून के कठघरे में लाया जाए और सख्त सजा दी जाए। आए दिन हिंसा से न केवल देश की छवि प्रभावित होती है, यह सामाजिक ताने-बाने के लिए उचित नहीं है। लोगों के दिमाग में धीमी आंच पर पकती नफरत कालांतर में बड़ी चुनौती पैदा कर सकती है, इसलिए समय रहते इसका पुख्ता समाधान होना चाहिए।

सरकार को सोशल मीडिया पर नजर रखते हुए भड़काऊ, हिंसाप्रेमी तत्वों को पकड़ने में तेजी लानी चाहिए। अगर इसके लिए कठोर कानून की आवश्यकता है तो उस पर अविलंब चर्चा हो और उस दिशा में कदम उठाए जाएं। सामाजिक सद्भाव की रक्षा के लिए प्रशासन को अपनी शक्ति का अहसास कराना होगा।

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