महाभियोग की राजनीति

महाभियोग की राजनीति

आजाद भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ देश के सात विपक्षी दलों के ७१ सदस्यों ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को महाभियोग का नोटिस दिया था, जो खेदजनक होने के साथ-साथ इस लोकतांत्रिक देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने चीफ जस्टिस के खिलाफ दिए गए महाभियोग नोटिस में उनके खिलाफ पांच आरोप लगाए हैं। पहला आरोप प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट से जु़डा है। विपक्ष का कहना है कि यह रिकार्ड पर है कि सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की है। इस मामले में बिचौलियों के बीच रिकार्ड की गई बातचीत का ब्यौरा भी है। इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शिवनारायण शुक्ला के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत मांगी और चीफ जस्टिस को सबूत भी दिए लेकिन उन्होंने जांच की इजाजत देने से इंकार कर दिया। इसका आरोप उस रिट याचिका को चीफ जस्टिस के देखे जाने के प्रशासनिक और न्यायिक पहलू से जु़डा है जो प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में जांच की मांग करते हुए दायर की गई थी। तीसरा आरोप भी इसी मामले से जु़डा है। विपक्ष का चौथा आरोप गलत हलफनामा देकर जमीन हासिल करने का है। कहा गया है जस्टिस मिश्रा ने वकील रहते हुए जमीन ली। वर्ष २०१२ में सुप्रीमकोर्ट जज बनने पर वापिस की जबकि १९८५ में ही उसका आवंटन रद्द कर दिया गया था। पांचवां आरोप है कि सुप्रीमकोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण व संवेदनशील मामलों को विभिन्न पीठों को आवंटित करने में अपने पद व अधिकारों का दुरुपयोग किया। आरोप चाहे जितने भी गंभीर हों, महाभियोग का नोटिस देश की संवैधानिक संस्थाओं के प्रति गहराते अविश्वास को ब़ढाने वाला है, जिसका दूरगामी प्रभाव भी प़ड सकता है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट आहत है कि इस मसले पर खुलकर बयानबाजी हो रही है। कोर्ट ने एडवोकेट जनरल केके वेणुगोपाल से सहयोग का आग्रह करते हुए कहा है कि इस मामले की मीडिया रिपोर्ट न करे। विपक्ष दलों ने भी माना है कि उन्होंने ब़डे दुखी मन से नोटिस दिया है। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा है कि हम भी चाहते थे कि न्यायपालिका का मामला उसके भीतर सुलझ जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हम अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। क्योंकि संविधान और एक संस्था की स्वतंत्रता और स्वायत्तता का सवाल है।महाभियोग के प्रस्ताव का पहला कदम विपक्ष ने जरूर उठाया है लेकिन इसी साल १२ जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार प्रेस कांफ्रेंस कर न्यायपालिका के कामकाज को लेकर सवाल उठाए थे। कहा गया कि चीफ जस्टिस का कार्यालय न्यायिक प्रशासन के स्थापित मानदंडों को तो़ड रहा है, जिससे समूची न्यायप्रणाली पर आघात हो रहा है और देश का लोकतंत्र खतरे में प़ड गया है। निश्चित रूप से यह भी नितान्त चिंतनीय विषय है जिसका संबंध भारत के भविष्य से सीधे जु़डा हुआ है और इसी परिस्थिति के चलते महाभियोग की पहल ने जन्म लिया। बहरहाल, राज्यसभा के सभापति वेंकैया ने महाभियोग के नोटिस को खारिज कर उचित कदम उठाया है।

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