शीघ्र इंसाफ के लिए

शीघ्र इंसाफ के लिए

जहां चाह, वहां राह की तर्ज पर जस्टिस रंजन गोगोई ने अदालतों में लंबित मामलों का अथाह समुद्र साफ करने के लिए जजों को खुद राह बनाने का फॉर्मूला दिया है। इसके लिए उन्होंने कुछ सलाह, कुछ निर्देश दिए हैं्। यह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों सहित देश की अदालतों में लंबित तीन करो़ड से भी ज्यादा मामलों की भी़ड छांटने के उस फॉर्मूले के तहत है, जिसके संकेत उन्होंने २९ सितंबर को युवा वकीलों को संबोधित करते हुए और ३ अक्तूबर को देश के प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ लेने के तुरंत बाद दिए थे। यह उस संकेत के अमल में आने की शुरुआत है। जस्टिस गोगोई ने हाईकोर्ट के कॉलेजियम सदस्यों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बात करके लंबित मामलों में कमी लाने के लिए सख्ती करने को कहा। यह भी जता दिया कि किस तरह यह उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता में है। कार्य-दिवस के दौरान किसी भी तरह की छुट्टी पर रोक ऐसा ही सख्त डोज है, जिसके अनुसार आपात स्थितियों को छो़ड कोई भी जज किसी भी कार्य-दिवस में छुट्टी तो नहीं ही लेगा, उसे सेमिनार, सभा-संगोष्ठियों और ऐसे किसी आधिकारिक कार्यक्रमों से भी दूरी बनाकर रखनी होगी, क्योंकि ऐसी सक्रियता अगले दिन के काम पर असर डालती है। जजों की कमी से लेकर तमाम तरह की दिक्कतों, त्वरित सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनाने की बात तो होती रही है। कुछ खास मामलों में तो सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसी अदालतों के गठन का सुझाव दिया, लेकिन हुआ कुछ नहीं्। सच है कि विशेष अदालतें हों या फास्ट ट्रैक, दोनों के लिए जजों का अच्छा-खासा संख्या बल चाहिए, जिसका लंबे समय से संकट है। कोशिशें तो पहले भी हुईं, लेकिन ज्यादा समेकित रूप न होने के कारण उतना व्यापक असर नहीं दिखा। २०१३-१४ में चीफ जस्टिस पी सदाशिवम ने भी ऐसे ही हालात का हवाला देते हुए अदालती कार्य-दिवसों में विदेश यात्राएं न करने की सलाह दी थी। जस्टिस गोगोई अपने सख्त व्यवहार व काम के प्रति समर्पण के लिए ख्यात हैं्। वह अदालत में तथ्यों से अलग जाकर बात करने को समय गंवाना मानते हैं और इसके लिए अच्छे-अच्छे वकीलों तक को टोक देते हैं्। उन्होंने जिस तरह जजों की एलटीसी पर रोक लगाई है, इस बात का इशारा है कि कोई भी अवकाश बहुत पहले और साथी जजों के तालमेल से तय होना चाहिए, ताकि काम पर उसका असर न प़डे। उन्होंने जजों की रिक्तियों पर बिना किसी दबाव के शीघ्र भर्ती के साथ ही निचली अदालतों में मामले निपटाने की दैनिक समीक्षा की संभावनाएं तलाशने का इशारा करके भी बहुत कुछ साफ कर दिया है। लंबित मुकदमों का बोझ कम करने, इन्हें तेजी से निपटाने के लिए जिस वैज्ञानिक व तार्किक सोच का परिचय उन्होंने दिया है, वह व्यापक हित में ब़डी राहत देने वाला कदम साबित होगा। उम्मीद है, उनका अगला निशाना अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही अदालतों की गरमी की छुट्टियां होंगी और वह इसके इस्तेमाल की भी कोई राह निकालेंगे। जस्टिस गोगोई की यह घुट्टी कुछ लोगों को क़डवी तो लगेगी, लेकिन समस्या जितनी विकराल है, उसमें उदार होने से भी तो काम नहीं चलने वाला। ऐसे समय में, जब न्याय की चाहत लिए लोगों की कतार लंबी होती गई हो, न्यायपालिका की त्रि-स्तरीय व्यवस्था के बाद भी तात्कालिक समाधान न दिख रहा हो, तब जस्टिस गोगोई का फॉर्मूला ब़डी उम्मीद बनकर आया है।

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