लालू की करनी लालू की भरनी

लालू की करनी लालू की भरनी

बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाले के एक और मामले में राजद सुप्रीमो लालू यादव दोषी पाए गए हैं्। लालू समेत १६ लोगों को दोषी पाया गया, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र समेत छह लोगों को बरी कर दिया गया है। लालू समेत अन्य आरोपियों को तीन जनवरी को सजा सुनाई जाएगी। देश की राजनीति में भूचाल लाने वाले इस मामले की परत-दर-परत खुलने से देश को पता चला था कि राजनेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से हुए इस घोटाले का दायरा अनुमान से भी कई गुना ब़डा था। २१ साल चले मामले में पहले भी लालू यादव समेत कई नेताओं और अधिकारियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। चारा घोटाले में कुल ३८ लोगों को आरोपी बनाया गया था। इनमें से ११ की अब तक मौत हो चुकी है, तीन सीबीआई के गवाह बन चुके हैं और दो ने अपना अपराध कबूल लिया। दरअसल, चारा घोटाला, घोटालों की एक ऐसी शृंखला थी, जिसमें महज चारे का ही घोटाला नहीं था बल्कि सारा मामला सरकारी खजाने से गलत ढंग से पैसे निकालने काथा। कई वर्षों तक कई मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में करो़डों की रकम पशुपालन विभाग के अधिकारियों और ठेकदारों ने राजनीतिक मिलीभगत से निकालीथी। कालांतर में मामला ९०० करो़ड से अधिक तक जा पहुंचा, जिसका ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल है। बिहार पुलिस ने वर्ष १९९४ में बिहार के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्जी बिलों से करो़डों रुपये निकालने के मामले दर्ज किये थे। अक्तूबर, २०१३ में भी लालू यादव को एक मामले में दोषी ठहराया गया था, जिसके चलते सांसद के रूप में चुनाव ल़डने के अयोग्य करार दिया गया। सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने से पहले लालू दो महीने जेल में रहे थे। बाद में वर्ष २०१४ में झारखंड हाई कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव को राहत देते हुए आपराधिक साजिश के मामले को वापस ले लिया था।बहरहाल, लालू यादव के चमकदार राजनीतिक करिअर को ग्रहण लगाने वाले इस मामले ने बिहार की राजनीतिक परिदृश्य में अप्रत्याशित बदलाव किया। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के वर्चस्व व भाजपा के उदय को इसके निहितार्थों के रूप में देखा जा सकता है। अभी भी आरजेडी इस मामले में केंद्र व प्रदेश भाजपा का दबाव और इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई का परिणाम बताती है। अदालत के फैसले के बाद राजनीतिक बयानबाजी का दौर शुरू हो चुका है। चारा घोटाले से पता चलता है कि अधिकारियों, दलालों और राजनीतिक षड्यंत्रों से किस प्रकार जनता के पैसे को ठिकाने लगाया जाता रहा है। महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी कि राजनीति में कोई कितना ब़डा दखल रखता हो, कानून की जद में आने से कोई बच नहीं सकता। एक समय बिहार का मतलब लालू यादव हुआ करता था। कोई सोच भी नहीं सकता था कि उन्हें अदालतों के चक्कर काटने प़डेंगे और अंतत: जेल के सींखचों के पीछे जाना प़डेगा। मगर राजनीतिक अहंकार और अमर्यादित राजनीति के चलते लालू यादव को तमाम मुकदमों की गिरफ्त में आना प़डा। चारा घोटाला घोटाले से जु़डे अन्य मुकदमों में अभी कई फैसले आने बाकी हैं्।

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