राज्यसभा की जिम्मेदारी

राज्यसभा की जिम्मेदारी

संसद के इस शीतकालीन सत्र में भी कार्यवाही लगभग ठप्प ही रही है। मुख्य तौर पर राज्यसभा की कार्यवाही पर अब पूरे देश की ऩजर है। विपक्ष ने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुजरात चुनाव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर उनके द्वारा दी गई टिपण्णी के लिए मा़फी मांगने की बात कही और फिर जब २जी मामले में न्यायलय का फैसला आया तो सरकार और विपक्ष के बीच काफी कहा सुनी भी हुई। राज्यसभा में भी इस बात पर चर्चा गरमाई । सच तो यह है की राज्यसभा के सामने यह चुनौती है कि उसके समक्ष पेश किये जा चुके अनेक विधयकों को वह कब मंजूरी प्रदान करेगी। राज्यसभा को पहले से ही आलोचना का सामना करना प़ड रहा है। इस शीतसत्र में भी काफी मूल्यवान समय को बिना सदन की कार्यवाही के बर्बाद कर दिया गया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है की संसद की कार्यवाही भंग हुई हो। पहले भी कई बार सरकारों और विपक्ष के बीच की झ़डप के कारण संसद के सत्र बर्बाद हुए हैं्। अगर नरेंद्र मोदी देश के हित में कार्य करना चाहते हैं तो उन्हें विपक्ष को साथ लेकर संसद की कार्यवाही सफलता पूर्वक ढंग से कराने पर ़जोर देना चाहिए। साथ ही अगर विपक्ष अपने किसी मुद्दे पर बेतुके तरीके से बाधा डालने की कोशिश करता है तो ऐसी बातों को भी जनता के समक्ष रखने की जरूरत है। अगर हमारी संसद में कार्यवाही बार बार बाधित होती रहेगी तो निश्चित रूप से अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं में विलम्ब होता रहेगा। विपक्ष को भी अपनी जिम्मेदारियों को समझने की आवश्यकता है और सरकार का विरोध सकारात्मक तरीके से करते हुए आगे ब़ढने की जरूरत समझनी होगी। राज्यसभा में प्रश्नकाल भी पहले से आवंटित अवधि के केवल १८ प्रतिशत समय में ही संभव हो सका है। देश के अनेक विधेयक लोकसभा में पारित होने के बावजूद काफी लम्बे अरसे तक राज्यसभा में अटक जाते हैं और इसका खामियाजा देश की जनता को भुगतना प़डता है। राज्य सभा में धीरे धीरे भारतीय जनता पार्टी बहुमत की और ब़ढ रही है परंतु फिलहाल विपक्ष अपना महत्व बरकार रखने के लिए कोई कसर नहीं छो़ड रही है। कई विधेयकों को अटकाने की पूरी कोशिश की जाती है। विपक्ष और सरकार को यह समझना होगा कि अगर देश के विकास और सुरक्षा से संबंधित विधेयक सिर्फ आपसी रसाकस्सी की वजह से राज्यसभा में अटके रहेंगे तो यह देश हित में नहीं है। सभी दलों को राज्यसभा में विचाराधीन विधेयकों पर विस्तृत विचार विमर्श करके इन्हें पारित करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करनी होगी। अगर राज्य सभा को अपनी गरिमा बनाए रखनी है तो इसके लिए कारगर फैसले लेते हुए भविष्य में बिना समय गंवाए काम करना होगा। बुद्धिजीवियों के सदन के रूप में प्रसिद्ध राज्यसभा की प्रतिष्ठा अब सदस्यों के विवेक पर ही निर्भर है। दोनों सदनों में राज्यसभा का अपना विशिष्ट महत्व है। राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में निर्णय लेने में इस सदस्य को पीछे नहीं रहना चाहिए्।

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