ट्रम्प की सख्ती बनाम….

ट्रम्प की सख्ती बनाम….

परंपरागत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कई बार ब़डी क़डी या खरी-खरी बात कहना मुमकिन नहीं होता है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप अलग किस्म के मुखिया हैं। वे अपने पैर पर कुल्हा़डी मारने के अंदाज में भी बहुत सी बातें कहते हैं। सोमवार को उन्होंने पाकिस्तान के बारे में यह ट्वीट किया कि इस देश को लगातार बेहिसाब अमेरिकी मदद बेवकूफी का काम था क्योंकि यह लगातार आतंकियों की पनाहगाह बना हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने आज एक ब़डी मदद को रोक भी दिया है। बदले में उन्होंने हमें सिर्फ झूठ और धोखा दिया है, हमारे नेताओं को बेवकूफ बनाते हुए.. जिन आतंकियों को हम अफगानिस्तान में मारते हैं उन्हें वो अपनी जमीन पर पनाह देता हैय। पाकिस्तान ने इस पर एतराज जताते हुए कहा है कि उसने अलकायदा जैसे आतंकी संगठन को खत्म करने में इतने बरस लगातार अमेरिका की मदद की, खुफिया जानकारी मुहैया कराई, अपने देश में फौजी अड्डों का इस्तेमाल करने दिया। इसके एवज में पाकिस्तान को अमेरिका से महज तोहमत और शक हासिल हुआ है। भारत में भाजपा के कुछ नेताओं ने तुरंत ही इसे मोदी की कूटनीतिक जीत करार देते हुए खुशी मनाई है। ट्रंप के काम करने का अपना एक अलग और अपारंपरिक अंदाज है, जो कि पाकिस्तान के खिलाफ इस बार तो कारगर होता दिख रहा है। पाकिस्तान की जमीन से जिस अंदाज में भारत पर आतंकी हमले होते रहे हैं, उससे न सिर्फ अमेरिका, बल्कि बहुत से और पश्चिमी देश भी फिक्रमंद रहे हैं। जिस तरह से मुंबई पर हमला हुआ था, वह शायद न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर ओसामा-बिन-लादेन के विमानों के हमले के बाद का सबसे ब़डा हमला था, और उसकी ज़ड़ें पाकिस्तान तक पक़डा भी गई थीं। अमेरिका की अपनी मजबूरी है कि उसे पाकिस्तान को अपना एक फौजी अड्डा बनाकर चलना प़डता है क्योंकि उसके बगल में अफगानिस्तान में वह जिन ताकतों से ल़डाई ल़ड रहा है, उसके लिए पाकिस्तान की जमीन और उसकी हिस्सेदारी जरूरी है। फिर यह पाकिस्तान ही है जो कि अपनी जमीन पर अपनी मर्जी के के खिलाफ अमेरिकी हमलों को बर्दाश्त करता है। पाकिस्तान को अमेरिका का सहयोग इस बर्दाश्त की कीमत भी है। फिर इसके दो पहलू और हैं, एक तो यह कि हिन्द महासागर के इस क्षेत्र में अमेरिका को अपने लिए अगर एक फौजी अड्डा चाहिए, तो वह पाकिस्तान के अलावा और किसी देश में हासिल नहीं हो सकता। वह चीन के खिलाफ भी उसकी सरहद से लगे किसी देश में ऐसी जगह चाहता है, और उसका भुगतान भी अमेरिकी मदद की शक्ल में होता है लेकिन पाकिस्तान में एक के बाद दूसरी भ्रष्ट सरकारें वहां की आमतौर पर भ्रष्ट और बेकाबू साबित होती हुई फौज मिलकर अमेरिकी मदद का बेजां इस्तेमाल करती आई हैं, और ऐसे में अमेरिका का यह फौजी-पूंजीनिवेश उसे गटर में जाता दिख रहा है, तो इसमें ब़डी हैरानी नहीं है।

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