हरियाणा में युवतियों और मासूम बच्चियों के साथ चौबीस घंटे के अंदर रोंगटे ख़डी करने वाली तीन पाशविक घटनाएं पुलिस व शासन की नाकामी तो बता ही रही हैं, साथ ही हमारे समाज में जो डरावनी विकृत-वीभत्स मानसिकता पनप रही है उसे भी सामने लाती हैं। हैवानियत का मंजर बता रहा है कि निर्भया कांड के बाद यौन हिंसा रोकने के लिए जो कानूनी सख्ती की गई, वह टांय-टांय फिस्स साबित हुई है। पानीपत में जहां रिश्तों के छल के बल पर किशोरी की जान लेकर अस्मत लूटी गई, वहीं जींद की घटना अमानवीयता की पराकाष्ठा है, जहां सामूहिक बलात्कार के बाद निर्भया कांड की पीि़डता की तरह अंग-भंग किये गए। फरीदाबाद की घटना में ऑफिस से लौट रही युवती को सरेराह अपहृत किया गया और सामूहिक दुष्कर्म के बाद स़डक पर फेंका गया। बताते हैं कि अपहरण के दौरान सूचित करने के बावजूद पुलिस अपराधियों तक नहीं पहुंच पाई। ये घटनाएं हर किसी संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित करने व अभिभावकों को डराने वाली हैं। इससे शासन व पुलिस-प्रशासन की नाकामी भी उजागर होती है। यह ठीक है कि हर जगह पुलिस की मौजूदगी संभव नहीं है, मगर अपराधियों में पुलिस-कानून का भय तो होना ही चाहिए। सरकार भी तो मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त करने के साथ जवाबदेही तय कर सकती है कि अपराध न रुकने पर सख्त कार्रवाई की जायेगी। यही वजह है कि विपक्ष ‘बेटी बचाओ, बेटी प़ढाओ’’ अभियान को विफल बताते हुए सरकार को कठघरे में ख़डा कर रहा है। इससे पहले भी कई घटनाओं का यही हश्र हुआ।दरअसल, यहां प्रश्न हमारी व्यवस्था की विसंगतियों का भी है। वजह तलाशनी होगी कि क्यों अपराधियों में पुलिस-कानून का भय नहीं है? क्यों पुलिस को लैंगिक दृष्टि से संवेदनशील नहीं बनाया जा सका? क्यों कमजोर तबके व नाबालिगों को निशाना बनाया जा रहा है? क्यों पीि़डताओं को निशाना बनाकर उनके साथ हिंसक पशुवत व्यवहार किया जा रहा है? यह समाज विज्ञानियों के लिए भी चिंतन का समय है कि क्यों हम हैवानियत का समाज रच रहे हैं। कहीं हरियाणा में लैंगिक असमानता से उपजी यौन कुंठाएं यौनिक अपराधों के मूल में तो नहीं हैं? क्यों अपराधी कानून, समाज व शासन का किसी तरह का भय महसूस नहीं कर रहे हैं? क्या ये नशे से उपजी विकृतियां हैं? क्या यह उस नीले जहर का प्रकोप है, जो हर मोबाइल में सहज खुलता नजर आ रहा है? कई बर्बर घटनाओं की जांच में खुलासा हुआ है कि अपराधियों ने नशा करने के बाद ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया। बहरहाल, कारण जो भी हो, यौन अपराधों पर सख्ती से शिकंजा कसने और फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए अपराधियों को क़डी सजा देने का वक्त आ गया है। यह शासन-प्रशासन के सख्त होने व समाज के सजग होने का समय है। जागरूकता की शुरुआत घर से होनी चाहिए। अपनी बेटियों को हर स्थिति से ल़डने के लिए तैयार करना चाहिए। उन्हें सभी जानकारियां देनी चाहिए। मात्र व्हाट्स पर ही नहीं अपितु अपने आस प़डोस के बारे में भी हमें जानकारी रखना जरूरी है।
निरंकुश पाश्विकता
निरंकुश पाश्विकता







