सर्वे में उजागर समस्या

सर्वे में उजागर समस्या

सरकार ने संसद में आर्थिक सर्वे पेश किया, लेकिन उससे रोशनी एक ब़डी सामाजिक समस्या पर प़डी। कहा जा सकता है कि आर्थिक आंक़डों पर चाहे जैसे सवाल उठें या संदेह ख़डे किए जाएं, इस सामाजिक पहलू को स्वीकार करने में किसी को दिक्कत नहीं होगी। मुद्दा यह है कि इससे समाज को मुक्ति दिलाने के लिए सरकार क्या कदम उठाती है और इसके लिए समाज को कितना प्रेरित कर पाती है? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में गुलाबी’’ रंग में रंगा आर्थिक सर्वेक्षण इसीलिए पेश किया, क्योंकि इसे सरकार ने महिला सशक्तिकरण का प्रतीक समझा। सर्वे में बताया गया कि देश में पुरुषों के मुकाबले महिलाओें के अनुपात में असंतुलन ६.३ करो़ड महिलाओं की कमी’’ को दिखाता है। समीक्षा का रंग महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को खत्म करने के लिए तेज हो रहे अभियानों को सरकार के समर्थन का प्रतीक है। आर्थिक सर्वेक्षण में लैंगिक विकास पर विशेष जोर दिया गया है। देश की आर्थिक प्रगति में बाधक कई लैंगिक असमानताएं संकेतकों के प्रति सर्वेक्षण में चेतावनी दी गई हैं। इसमें रोजगार क्षेत्र में असमानता, समाज का पुत्र मोह, गर्भनिरोधक का कम इस्तेमाल इत्यादि को देश के विकास में बाधक बताया गया है। सर्वेक्षण के अनुसार इस पुत्र-मोह’’ के चलते समाज में ल़डकियों को अवांछित मानने की सोच बनती है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि महिलाओं के विकास से जु़डे विभिन्न मानकों पर पूर्वोत्तर के राज्यों का प्रदर्शन अन्य सभी राज्यों से बेहतर है। वहीं दक्षिण के आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का प्रदर्शन उम्मीद से खराब रहा है। सर्वेक्षण में भारतीय समाज के पुत्र-मोह’’ पर भी विशेष ध्यान दिलाया गया है। इसमें अभिभावकों के बारे में कहा गया है कि पुत्रों को पैदा करने की चाहत में वे गर्भ धारण को रोकने के उपाय नहीं अपनाते हैं्। इससे कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराधों का ग्राफ देश में लगातार ब़ढ रहा है। वित्त वर्ष २००५-०६ में ३६ प्रतिशत महिलाएं कामकाजी थीं, जिनका स्तर २०१५-१६ में घटकर २४ प्रतिशत पर आ गया। सरकार की बेटी बचाओ, बेटी प़ढाओ’’, सुकन्या समृद्धि योजना और मातृत्व अवकाश की संख्या ब़ढाए जाने को सर्वेक्षण में सही दिशा में उठाया गया कदम बताया। हालांकि सरकार ने अपनी बेटी बचाओ, बेटी प़ढाओ’’, सुकन्या समृद्धि योजना और मातृत्व अवकाश की संख्या ब़ढाए जाने को सर्वेक्षण में सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है, लेकिन सर्वे से सामने आए आंक़डे ये भरोसा नहीं बंधाते कि ये योजनाएं अपेक्षित परिणाम दे रही हैं।

About The Author: Dakshin Bharat