बचाव और तल्खी

बचाव और तल्खी

अभी आम आदमी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल द्वारा अकाली नेता व पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से मानहानि मामले में माफी मांगने से उपजा विवाद थमा भी न था कि उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से भी अपने बयानों से पीछे हटते हुए माफी मांग ली। इससे पहले उन्होंने वर्ष २०१७ में हरियाणा के भाजपा नेता अवतार सिंह भ़डाना को भी माफीनामा भेजा था। निश्चित रूप से बिना ठोस प्रमाणों के आरोप लगाने के मामलों में अदालत के चक्कर काट रहे केजरीवाल को एहसास हो गया है कि लंबे समय तक महज आरोप-प्रत्यारोपों की राजनीति नहीं की जा सकती। नि:संदेह संवेदनशील मौकों पर हर किसी पर बिना प्रमाण के आरोप लगाने से कोई मकसद हासिल नहीं हो सकता। दरअसल, लगातार विवादों से घिरी पार्टी की गिरती लोकप्रियता के बाद आरोपों के दायरे में आए नेता आक्रामक मुद्रा में पलटवार करने लगे थे। अरुण जेटली पर लगाए गए आरोपों के मामले में मानहानि केस अभी अदालत में है। दरअसल, जिस वैकल्पिक राजनीति के वायदे के साथ ‘आप’’ दिल्ली की सत्ता में आई, वह कोर्ट-कचहरी विवाद के चलते पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। केंद्र सरकार व दिल्ली के उपराज्यपाल से जारी टकराव से यह तो जाहिर होता है कि सत्ता में आने के बाद भी आप अपने शुरुआती बगावती तेवरों से मुक्त नहीं हो पाई जो पार्टी की राजनीतिक अपरिपक्वता को ही उजागर करता है। बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ पंजाब चुनाव के दौरान लगाए गए आरोपों से पीछे हटने के बाद पार्टी से पंजाब के विधायकों में जो घमासान मचा, वह स्वाभाविक ही था। नेतृत्व के अपने बयान से पीछे हटने से स्थानीय विधायकों के लिए जनता का सामना करना मुश्किल हो रहा था। पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में आप विधायक का दावा है कि जब एसटीएफ रिपोर्ट में आरोपों की पुष्टि हो चुकी है तो ऐसे में माफीनामे से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल ही गिरेगा। आखिर गंभीर आरोप लगाते समय इस बात का ध्यान क्यों नहीं रखा जाता कि इसकी पुष्टि कैसे होगी? खासकर तब जब पार्टी ईमानदारी व पारदर्शिता के दावों के साथ राजनीति में उतरी हो। कहीं न कहीं माफी के निर्णय से पहले कार्यकर्ताओं को विश्वास में लिया जाना जरूरी था। यह लोकतंत्र का तकाजा है। पिछले दिनों बाहरी पूंजीपतियों को राज्यसभा में भेजने को लेकर भी ऐसा ही विवाद ख़डा हुआ था जो पार्टी में बहुमत को दरकिनार करके मनमानी थोपने जैसा था। वैकल्पिक राजनीति का दावा करने वाली पार्टी के लिए यह शुभ संकेत नहीं है।

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