Dakshin Bharat Rashtramat

चाहबहार: कूटनीतिक उपलब्धि

चाहबहार: कूटनीतिक उपलब्धि

रविवार को ईरान के राष्ट्रपति डॉ हसन रोहानी ने चाबहार बंदरगाह के पहले चरण का औपचारिक उद्घाटन किया। यहां कुल पांच गोदियां बनाई जानी हैं, जिनमें से दो का निर्माणकार्य पूरा कर लिया गया है। यह बंदरगाह भारत-ईरान के संयुक्त सहयोग से निर्मित किया जा रहा है और भारत सरकार अब तक इसमें दो लाख करो़ड रुपए निवेश कर चुकी है। चाबहार का शाब्दिक अर्थ है – जहां चारों मौसम बसंत के हों और यकीनन अब जबकि यह बंदरगाह संचलन में आ गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे न केवल भारत-ईरान के संबंधों की सीमाएं विस्तृत होंगी, बल्कि इससे भारत को रणनीतिक और आर्थिक स्तर पर लाभ भी मिलेंगे। ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह की भू-राजनीतिक स्थिति बेहद खास है। इससे ७२ किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह स्थित है, जो पाकिस्तान-चीन का संयुक्त उपक्रम है। महत्वाकांक्षी चीन, वन बेल्ट-वन रोड और अपनी मोतियों की माला नीति से पहले ही एशिया और हिंद महासागर में भारत की घेरेबंदी में लगा हुआ है। अफगानिस्तान के लिए चाबहार जहां आर्थिक और सामरिक अवसरों के आमंत्रण सरीखा है, वहीं इससे ईरान की वह पुरानी मंशा भी पूरी होती है, जिसके लिए वर्ष २००२ में ईरानी सुरक्षा सलाहकार हसन रूहानी और भारतीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र ने पहल की थी। पाकिस्तान को यह चाबहार की बहार यकीनन रास नहीं आएगी, क्योंकि एक तो ग्वादर बंदरगाह की भौगोलिक स्थिति उतनी अनुकूल नहीं है और आतंकवाद के कारण यह एक अशांत क्षेत्र माना गया है। साथ ही ग्वादर की वजह से पाकिस्तान का जो सामरिक दबाव अफगानिस्तान पर था, वह भी चाबहार ने नि्क्रिरय कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हर राष्ट्र को अपने हित स्वयं ही साधने होते हैं। इसके लिए सभी राष्ट्र अपनी क्षमताओं के अनुरूप अन्य राष्ट्रों से संपर्क ब़ढाते हैं। चीन ने दक्षिण एशिया में पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल आदि देशों से आर्थिक-सामरिक संबंध बनाए हैं। पाक-अधिकृत कश्मीर और चीन-अधिकृत अक्साई चीन पर पाकिस्तान-चीन के द्वारा पारस्परिक व्यापारिक गलियारा विकसित कर लेने से भारत के लिए सामरिक चुनौती उत्पन्न हो गई और दूसरे ऊर्जा के विपुल स्रोत मध्य एशिया के देशों से भौतिक संपर्क अवरुद्ध हो गया। चाबहार से ईरान-अफगानिस्तान-रूस होते हुए यूरोप से संबद्धता ब़ढेगी और तुर्कमेनिस्तान-कजाखिस्तान सीमा रेलवे परियोजना से भारत की उपस्थिति मध्य एशिया में भी ब़ढेगी। इस प्रकार भारत की ’’कनेक्ट सेंट्रल एशिया’’ की नीति भी पल्लवित होगी, साथ ही पाकिस्तान और चीन की भारत की मध्य एशिया से भौतिक संबद्धता को अवरुद्ध करने की मंशा को भी करारा झटका लगेगा।

About The Author: Dakshin Bharat

Dakshin Bharat  Picture