बेंगलूरु: ‘मिलीभगत’ के खेल पर एनजीटी का चाबुक

बेंगलूरु: ‘मिलीभगत’ के खेल पर एनजीटी का चाबुक

प्रतीकात्मक चित्र। फोटो स्रोत: PixaBay

झील बफर ज़ोन में लक्जरी विकास प्रोजेक्ट को बंद किया गया

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। एनजीटी की पूर्ण पीठ के एक फैसले में सरकारी तंत्र और कॉर्पोरेट की ‘मिलीभगत’ के मामले पर सख्त रुख दिखाया गया है। इसके तहत कैकोंद्रहल्ली झील बफर ज़ोन में लक्जरी विकास प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया है।

इस दौरान न केवल डेवलपर गोदरेज प्रॉपर्टीज लिमिटेड और वंडर प्रोजेक्ट्स डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड पर 31 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया। साथ ही झील बफर ज़ोन की बहाली के लिए भी कहा गया जो कभी आर्द्रभूमि से बना था।

फैसले से महादेवपुरा परिसर संरक्षण मट्टू अभिवृद्धि समिति के सदस्य उत्साहित हैं और वे इसे नागरिकों की जीत करार दे रहे हैं। इसके एक सदस्य ने बताया कि यह मामला बताता है कि कानूनी लड़ाई लड़ने की जिम्मेदारी आम नागरिकों पर है।

वहीं, बीबीएमपी के एक अधिकारी ने भी माना कि एनजीटी का यह फैसला ऐतिहासिक है जिससे झीलों के पास भविष्य में निर्माण गतिविधियां प्रभावित होंगी।

साथ ही, इस बात को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि विभिन्न सरकारी निकायों द्वारा प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी कैसे दी गई। आदेश में, गलती करने वाले अधिकारियों को दंडित करने और निर्माण को ध्वस्त करने के लिए कहा गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि बीबीएमपी और राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण को दो महीने के भीतर प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने की योजना के साथ आना चाहिए।

समिति के एक अन्य सदस्य का कहना है कि जिन सरकारी निकायों ने समस्या पैदा की, उन्हें इसे ठीक करने के लिए कहा गया है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि झील को केवल अस्थायी राहत मिली है। हम तब तक संतुष्ट नहीं हो सकते जब तक पर्यावरण संबंधी परिस्थितियों की बहाली नहीं हो जाती। प्रकृति को दो झीलों का पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में एक सदी से अधिक का समय लगा। इंसानों को इसे नष्ट करने में पांच साल लगे हैं। दूसरी ओर, अधिकारी इस समस्या के लिए अन्य विभागों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

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