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मैसूरु में पर्यटकों को खूब भा रही है तांगे की सवारी

मैसूरु में पर्यटकों को खूब भा रही है तांगे की सवारी

सांकेतिक चित्र

विरासत के दीदार के साथ पुराने दौर को फिर जीने की ख्वाहिश

मैसूरु/दक्षिण भारत। दशहरे की तैयारियों के बीच शहर की रौनक देखने आ रहे पर्यटकों में तांगे की सवारी का खास आकर्षण है। इसमें सवार होकर पर्यटक न केवल यहां की विरासत को करीब से देखना चाहते हैं, बल्कि इसके जरिए वे पुराने दौर को भी एक बार फिर जीना चाहते हैं।

तांगा सवारी को पुनर्जीवित करने के लिए, कुछ साल पहले दशहरे के दौरान इसका विचार पेश किया गया था, विरासत और कई यादों को अपने में संजोए ऐसा वाहन जिसने कभी यहां की सड़कों पर राज किया था। त्योहारी सीजन में तांगा सवारी ने विरासत से जुड़े स्थलों के प्रति आकर्षण को भी बढ़ा दिया है। चूंकि मैसूरु में 200 से अधिक विरासत स्थल हैं।

हालांकि, दशहरे के बाद तांगावालों के सामने रोजमर्रा की ज़िंदगी का वहीं संघर्ष मौजूद होता है। सड़कों पर तेज रफ्तार से दौड़ते वाहनों की तुलना में तांगे पिछड़ते नजर आते हैं। एक समय था जब ‘महलों के शहर’ के दीदार के लिए आने वाले पर्यटकों को लगता था कि यदि उन्होंने परंपरागत तांगे की सवारी नहीं की तो यह सफर अधूरा ही रहेगा।

चूंकि तांगा शहर के आसपास के स्टैंडों के अभाव में ज्यादातर शहर के केंद्रों में संचालित होते हैं। अधिकारियों ने तांगा स्टैंड के लिए कुक्करहल्ली झील, मंडी मोहल्ला मार्केट और पीपल्स पार्क के पास के स्थानों को निर्धारित किया है।

तांगावालों के अनुसार, साल 1960 में मैसूरु में 700 तांगे और 40 तांगा स्टैंड थे। आज 100 से भी कम तांगे हैं। ऐसा भी समय आता है जब तांगावालों को कोई यात्री नहीं मिलता और उन्हें मजबूरन सामान ढोना पड़ता है। एक तांगावाला औसतन 200 रुपए से 250 रुपए प्रतिदिन कमाता है।

कुछ साल पहले, यहां पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में मैसूरु नगर निगम (एमसीसी) ने घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों को पेश किया। निगम उन लोगों को 50 प्रतिशत तक धन देता है, जो रथ खरीदना और शेष राशि बैंक से कर्ज के तौर पर तौर लेना चाहते हैं।

प्रत्येक रथ की कीमत लगभग 1.75 लाख रुपए है। स्थानीय अधिकारियों द्वारा बीजापुर, पंडरापुरा, पटियाला और लखनऊ से अच्छी नस्ल के घोड़ों की पहचान के भी प्रयास किए गए थे। स्थानीय नस्लों के स्थान पर काठेवाड़ी और दक्कन नस्लों को निर्धारित किया गया था।

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