दोहरा रवैया

तिब्बती जिस धर्म का पालन करते हैं, जिन महापुरुषों के प्रति विशेष आदरभाव रखते हैं, उसकी परंपराओं का भलीभांति निर्वहन वे ही कर सकते हैं


तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने के संबंध में किया गया चीन का दावा हास्यास्पद है। उसका यह कहना कि ‘वह दलाई लामा का अगला उत्तराधिकारी चुनने का एकमात्र अधिकारी है’ - न केवल तिब्बत की जनभावनाओं का अपमान है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि चीन कितना अवसरवादी है। एक ओर तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी किसी धर्म और दिव्य शक्ति का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं करती, दूसरी ओर वह दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने का दावा करती है।

यह तो उस व्यक्ति द्वारा स्वयं को सत्यवादी घोषित करने जैसा है, जिसने जीवनभर सिर्फ झूठ बोला हो! क्या संभव है? जिस चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया से लेकर साधारण कार्यकर्ता तक हर कोई धर्म को अफीम और बंदूक की नली को सत्ता प्राप्ति का माध्यम मानते हैं, उनका बौद्ध धर्म और दलाई लामा से क्या संबंध हो सकता है? स्पष्ट रूप से यह चीन का दोहरा रवैया और हठधर्मिता है। यह दावा अमेरिका-तिब्बत नीति के खिलाफ है, जिसके अनुसार दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन करने का अधिकार तिब्बत के लोग रखते हैं। यह उचित ही है।

तिब्बती जिस धर्म का पालन करते हैं, जिन महापुरुषों के प्रति विशेष आदरभाव रखते हैं, उसकी परंपराओं का भलीभांति निर्वहन वे ही कर सकते हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से यह अधिकार तिब्बत के लोगों के पास जाता है। चीन इसमें हस्तक्षेप कर तिब्बत की भूमि पर ही नहीं, लोगों के मन पर भी नियंत्रण करना चाहता है, जिसमें वह सफल नहीं होगा।

तिब्बत में लोग पुनर्जन्म पर विश्वास करते हैं। उनका मानना है कि उच्च लामा मानवता के उद्धार और मार्गदर्शन के लिए पुनः जन्म लेकर आते हैं। नए लामा के चयन की विशेष प्रक्रिया होती है। उसके बाद उन्हें धर्मग्रंथों की शिक्षा दी जाती है, समय-समय पर विद्वानों द्वारा परीक्षा भी ली जाती है। इस तरह लामा एक अनुशासित जीवन जीते हुए अपने समुदाय के लिए आदर्श बनते हैं। वे अहिंसा पर बहुत जोर देते हैं। मन, वचन और कर्म से अहिंसा। लोभ से दूरी और अनैतिकता का पूर्णतः त्याग।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का इन आदर्शों से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। उसका अहिंसा से उतना ही संबंध है, जितना अमावस्या का चंद्रमा से। कोरोना महामारी फैलाने में चीन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, जिसने दुनियाभर में लाखों लोगों का जीवन छीन लिया। यही नहीं, जून 2020 में जिस तरह गलवान घाटी में चीन ने भारत के साथ विश्वासघात किया, वह सिद्ध करता है कि इस पड़ोसी देश का शासक वर्ग घोर अनैतिक एवं लज्जाहीन है। उसके द्वारा तिब्बतियों के धर्म के संबंध में नीति निर्धारण का दावा उद्दंडता की पराकाष्ठा है।

ऐसा दावा कर चीन चाहता है कि वह तिब्बतियों के हृदय से राष्ट्रवाद की लौ को बुझा दे और अपनी मंशा के मुताबिक जनमत बनाए। तिब्बतियों को सावधान रहना चाहिए और चीन के ऐसे कृत्यों को कभी मान्यता नहीं देनी चाहिए।

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