गुजरात दंगा: उच्चतम न्यायालय मोदी को एसआईटी की क्लीन चिट बरकरार रखी, जाफरी की याचिका खारिज

जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि राज्य की ओर से एक बड़ी आपराधिक साजिश का सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं है, जिसके कारण हिंसा हुई


नई दिल्ली/दक्षिण भारत। उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा प्रधानमंत्री (तत्कालीन मुख्यमंत्री) नरेंद्र मोदी को दी गई क्लीन चिट को चुनौती देने वाली कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया।

जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि राज्य की ओर से एक बड़ी आपराधिक साजिश का सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं है, जिसके कारण हिंसा हुई।

फैसले में कहा गया है कि जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ राज्यभर में सामूहिक हिंसा करने के लिए उच्चतम स्तर पर बड़ी आपराधिक साजिश रचने के संबंध में मजबूत या गंभीर संदेह को जन्म नहीं देती है। इसलिए एसआईटी की रिपोर्ट को अंतिम माना जाना चाहिए।

फैसले में कहा गया ​है कि हमारा विचार है कि दिनांक 8.2.2012 को अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने में एसआईटी के दृष्टिकोण में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है, जो दृढ़ तर्क द्वारा समर्थित है, विश्लेषणात्मक मन को उजागर करता है और बड़े पैमाने पर आरोपों को खारिज करने के लिए सभी पहलुओं से निष्पक्ष रूप से निपटता है।

न्यायालय ने 8 दिसंबर, 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें कहा गया कि आखिर में हमें प्रतीत होता है कि गुजरात के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का संयुक्त प्रयास खुलासे करके सनसनी पैदा करना था, जो उनके स्वयं के ज्ञान के लिए झूठे थे। उनके दावों का झूठ पूरी तरह से जांच के बाद एसआईटी द्वारा उजागर किया गया था। ऐसे अधिकारियों को कठघरे में खड़ा होना चाहिए।

बता दें कि एहसान जाफरी गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी पर हमले में मारे गए थे। शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका में 2017 के गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने मामले में एसआईटी द्वारा दायर क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने के मजिस्ट्रेट के फैसले को बरकरार रखा था। इस तरह जाफरी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें रिपोर्ट को चुनौती दी गई थी।

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