नई दिल्ली/भाषा। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि 126 वर्ष पुराने मुल्लापेरियार बांध से जुड़ा मामला 'विरोधात्मक' नहीं है। यह एक मायने में जनहित याचिका (पीआईएल) है जिसमें बांध के आस-पास रहने वाले लोगों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के मुद्दे शामिल हैं।
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने मामले में संबंधित पक्षों की ओर से पेश वकीलों से कहा कि उन्हें 'मुख्य मुद्दों' की पहचान करने में न्यायालय की मदद करनी चाहिए जिनपर वह सुनवाई कर सके।
मुल्लापेरियार बांध का निर्माण केरल में इडुक्की जिले में पेरियार नदी पर 1895 में हुआ था। पीठ ने कहा कि मामले में पेश हो रहे वकीलों ने इन कार्यवाही में शीर्ष अदालत द्वारा गौर किए जाने वाले मुख्य मुद्दों की पहचान करने के लिए एक संयुक्त बैठक करने पर सहमति व्यक्त की है।
उसने कहा, 'उन्होंने (अधिवक्ताओं) अदालत को आश्वासन दिया है कि वे उन मुद्दों को स्पष्ट करेंगे जिन पर आम सहमति है और जिन मुद्दों पर मतभेद है और सुनवाई की अगली तारीख से पहले उस संबंध में एक नोट प्रस्तुत करेंगे।'
जब एक वकील ने लीकेज डेटा से संबंधित मुद्दा उठाया, तो पीठ ने कहा कि पहले यह तय करना होगा कि अदालत को इन कार्यवाही में किन मुख्य मुद्दों का जवाब देना है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि बांध में जल स्तर का प्रबंधन एक ऐसा मामला है जिसके लिए वह पहले ही एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त कर चुकी है और बांध की सुरक्षा भी एक संबंधित मुद्दा है जिस पर समिति को विचार करना है।
पीठ ने कहा कि यह 'प्रतिकूल मुकदमा' नहीं है। उसने मौखिक रूप से कहा, 'यह एक जनहित याचिका इस अर्थ में है कि उस बांध के आसपास रहने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे शामिल हैं। इसलिए, आप सभी को उन मुख्य मुद्दों की पहचान करने में हमारी मदद करनी चाहिए जिनका हमें न्यायिक पक्ष के तौर पर जवाब देना है। हम यहां बांध का प्रशासन देखने नहीं बैठे हैं।'
शीर्ष अदालत ने मामले को फरवरी के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि लिखित नोट चार फरवरी या उससे पहले जमा किया जाएं।
देश-दुनिया के समाचार FaceBook पर पढ़ने के लिए हमारा पेज Like कीजिए, Telagram चैनल से जुड़िए