हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली है, इनके बीच कोई अंतरविरोध नहीं: शाह

जब तक देश के प्रशासन की भाषा, स्वभाषा नहीं होगी, तब तक लोकतंत्र सफल हो ही नहीं सकता


वाराणसी/दक्षिण भारत। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा कि हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली है और इनके बीच कोई अंतरविरोध नहीं है। वे वाराणसी के दीन दयाल हस्तकला संकुल में आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को राजधानी दिल्ली से बाहर करने का निर्णय हमने वर्ष 2019 में ही कर लिया था। दो वर्ष कोरोना काल की वजह से हम नहीं कर पाएं, परन्तु आज मुझे आनंद है कि यह नई शुभ शुरुआत आजादी के अमृत महोत्सव में होने जा रही है।

शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि अमृत महोत्सव, देश को आजादी दिलाने वाले लोगों की स्मृति को पुनः जीवंत करके युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिए तो है ही, ये हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष है।

शाह ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत में देश के सभी लोगों का आह्वान करना चाहता हूं कि स्वभाषा के लिए हमारा एक लक्ष्य जो छूट गया था, हम उसका स्मरण करें और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। हिंदी और हमारी सभी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतरविरोध नहीं है।

शाह ने कहा कि पहले हिंदी भाषा के लिए बहुत सारे विवाद खड़े करने के प्रयास किए गए थे, लेकिन वह वक्त अब समाप्त हो गया है। प्रधानमंत्री ने गौरव के साथ हमारी भाषाओं को दुनिया भर में प्रतिस्थापित करने का काम किया है।

शाह ने कहा कि जो देश अपनी भाषा खो देता है, वह अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता है। जो देश अपने मौलिक चिंतन को खो देते हैं, वो दुनिया को आगे बढ़ाने में योगदान नहीं कर सकते हैं।

शाह ने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली लिपिबद्ध भाषाएं भारत में हैं। उन्हें हमें आगे बढ़ाना है। भाषा जितनी सशक्त और समृद्ध होगी, उतनी ही संस्कृति व सभ्यता विस्तृत और सशक्त होगी। अपनी भाषा से लगाव और अपनी भाषा के उपयोग में कभी भी शर्म मत कीजिए, यह गौरव का विषय है।

शाह ने कहा कि मैं गौरव के साथ कहना चाहता हूं कि आज गृह मंत्रालय में एक भी फाइल ऐसी नहीं है, जो अंग्रेजी में लिखी जाती या पढ़ी जाती है, पूर्णतय: हमने राजभाषा को स्वीकार किया है। बहुत सारे विभाग भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

शाह ने कहा कि देश की नई शिक्षा नीति का एक प्रमुख बिंदु है, भाषाओं का संरक्षण व संवर्धन और राजभाषा का भी संरक्षण व संवर्धन। नई शिक्षा नीति में राजभाषा और मातृभाषा पर बल दिया गया है। प्रधानमंत्री ने ये जो नया परिवर्तन किया है, वो भारत के भविष्य को परिवर्तित करने वाला होगा।

शाह ने कहा कि जब तक देश के प्रशासन की भाषा, स्वभाषा नहीं होगी, तब तक लोकतंत्र सफल हो ही नहीं सकता। लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब प्रशासन की भाषा, स्वभाषा हो, राजभाषा हो।

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