Dakshin Bharat Rashtramat

जासूसी के जुर्म में 16 साल सजा के बाद रिहा हुए पाकिस्तानी का बदला दिल, साथ ले गया गीता

जासूसी के जुर्म में 16 साल सजा के बाद रिहा हुए पाकिस्तानी का बदला दिल, साथ ले गया गीता

lord krishna and arjuna

वाराणसी। पाकिस्तान से भारत में दाखिल होकर यहां जासूसी के जुर्म में 16 साल सजा भुगतने के बाद एक शख्स का इस कदर हृदय-परिवर्तन हुआ है कि वतन वापसी के दौरान वह कर्मयोग का संदेश देने वाली पुस्तक ‘गीता’ अपने साथ लेकर जा रहा है। इस शख्स का नाम जलालुद्दीन है। वह पिछले करीब 16 वर्षों से जेल में बंद था। जब सजा पूरी होने के बाद अपने मुल्क लौटने की बारी आई उसने ऐसी बातें कही हैं जिनकी संभवत: किसी को उम्मीद नहीं रही होगी।

इसके अलावा जलालुद्दीन ने यह खास इच्छा जाहिर की कि वह भगवान श्रीकृष्ण का संदेश देने वाली पुस्तक ‘गीता’ साथ लेकर जाना चाहता है। उसकी यह इच्छा जेल अधिकारियों ने पूरी की। इसके बाद जलालुद्दीन को पुलिस अधिकारियों की एक विशेष टीम को सुपुर्द कर दिया गया। वे सोमवार को उसे वाघा बॉर्डर पर पाकिस्तानी अधिकारियों को सौंप देंगे।

एक हो जाएं भारत-पाक
जलालुद्दीन ने जासूसी के आरोप में अपनी जिंदगी के 16 साल भारत की जेल में बिताए। उसे पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारत की जासूसी के लिए भेजा था। सिंध के निवासी जलालुद्दीन की गतिविधियों पर शक हुआ तो पुलिस ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सेना से जुड़ी कई महत्वपूर्ण सूचनाएं पाई गई थीं। इसके अलावा उसके पास कई नक्शे थे।

इन सबूतों के आधार पर उसके खिलाफ जासूसी का मुकदमा चला और वह जेल भेज दिया गया। यहां उसने ‘गीता’ का अध्ययन किया। जेल में उसने पढ़ाई जारी रखने का निश्चय किया और बीए, एमए तक पास कर ली। यही नहीं, जलालुद्दीन ने इलेक्ट्रीशियन का कोर्स भी कर लिया। जब जेल से रिहा होने का समय करीब आया तो उसने भारत के गृह मंत्रालय को पत्र भेजा।

उसने इच्छा जताई कि भारत-पाकिस्तान दोबारा एक हो जाएं। इसके लिए उसने यूरोप के देशों की मिसाल दी। जलालुद्दीन ने कहा कि यदि दोनों मुल्क एक होकर रहेंगे तो दुनिया में किसी की इतनी जुर्रत नहीं होगी कि वह हमें गलत निगाह से देख सके।

भारत ​में मिला अपनापन
जलालुद्दीन ने भले ही 16 साल जेल में काटे हों, लेकिन यहां उसे अपनापन भी मिला। उसने लिखा है कि इस अवधि में कभी यह अहसास नहीं हुआ कि दूसरे मुल्क की जेल में कैदी है। उसने लिखा कि कुछ कट्टरपंथियों ने मुल्क का बंटवारा किया, लेकिन दिलों को तो नहीं बांट सके। उसने जेल में ईद, दिवाली और होली मनाने जिक्र करते हुए कहा कि इस तरह उसे कभी अहसास नहीं हुआ कि वतन से बहुत दूर कैदखाने में बंद है।

बता दें कि जलालुद्दीन को वर्ष 2003 में अदालत ने 33 साल कैद की सजा सुनाई थी जिसे उच्च न्यायालय ने 16 साल में तब्दील कर दिया था। सजा पूरी होने के बाद गृह मंत्रालय से अनुमति लेकर अब उसके मुल्क लौटने की राह खुल चुकी है।

About The Author: Dakshin Bharat

Dakshin Bharat  Picture