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कलियुगी बेटों ने जमीन हड़प बुजुर्ग मां-बाप को किया बेदखल तो कानून बना सहारा

कलियुगी बेटों ने जमीन हड़प बुजुर्ग मां-बाप को किया बेदखल तो कानून बना सहारा

सांकेतिक चित्र

पांच बेटों के बावजूद 15 साल से झोपड़ी में दिन काटने को मजबूर थे 86 साल के हीरालाल

दिव्यांग मां के लिए भी नहीं पसीजा बेटों का दिल

पुलिस में शिकायत के बाद हुई गिरफ्तारी तो उड़े बेटों के होश

राजनांदगांव/दक्षिण भारत। छत्तीसगढ़ में पांच कलियुगी बेटों ने अपने 86 साल के पिता और दिव्यांग मां के साथ जो किया, उसे पढ़कर आपकी आंखें नम हो जाएंगी। ज़िंदगी के इस पड़ाव पर आकर जब इन बुजुर्गों को सहारे की जरूरत थी, तब ये एक झोपड़ी में दिन काटने को मजबूर थे। सर्दी हो या गर्मी अथवा बरसात, हर मौसम में ये अपनी औलाद की राह देखते रहते थे कि कभी तो इनको झोपड़ी से पक्के घर में ले जाएंगे, लेकिन बेटों का दिल नहीं पसीजा।

अब देश का कानून इन बुजुर्गों का मददगार बना तो बेटों के होश उड़ गए। यहां के चिखली चौक निवासी हीरालाल साहू अपनी पत्नी के साथ पिछले करीब 15 साल से झोपड़ी में रहने को मजबूर थे। बुढ़ापे में भी बेटों सुमरन लाल, हुकूम साहू, प्रमोद साहू, उमाशंकर और कीर्तन साहू ने सुध नहीं ली। इन्होंने पिता की जमीन पर मकान बनाया और उसके ​बाद उन्हें ही बेदखल कर दिया। अब पुलिस ने पांचों बेटों को गिरफ्तार किया तो हड़कंप मच गया। हीरालाल की बहुओं ने इसके लिए माफी मांगी है।

बेटों ने नहीं सुनीं मिन्नतें
हीरालाल ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा सरकारी प्रेस में नौकरी करते बिताया। इस दौरान वे अपनी कमाई से बचत करते रहे कि इससे बेटों का भविष्य सुधर जाएगा और बुढ़ापे में खुद के दिन सुकून से कटेंगे। बेटों ने जमीन पर अपने लिए तो आशियाना बना लिया, पर मां—बाप को बाहर का रास्ता दिखा दिया। मजबूरन हीरालाल पिछले डेढ़ दशक से एक झोपड़ी में दिन बिता रहे थे। वे बेटों से मिन्नतें करते रहे कि उन्हें घर में रहने दें। इसके बावजूद बेटे अपनी दुनिया में मग्न रहे और मां-बाप को लगातार नजरअंदाज करते रहे।

आखिर में हीरालाल ने हौसला बटोरा और चिखली पुलिस में वरिष्ठ नागरिक सुरक्षा अधिनियम 2007 की धारा 24 के अंतर्गत बेटों के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया। इसके बाद पुलिस ने चार बेटों को गिरफ्तार कर लिया। वहीं भोपाल निवासी बेटे के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है। हालांकि बेटों को जमानत मिल गई है, लेकिन इससे उनके रवैए में तब्दीली आई है। पहले जहां वे मां-बाप की सुध तक नहीं लेते थे, अब उन्हें घर ले जाने की बात कर रहे हैं।

आर्थिक रूप से सक्षम परिवार
हीरालाल का सबसे बड़ा बेटा सुमरन सरकारी प्रेस में नौकरी करता था, जो अब सेवानिवृत्त हो चुका है। अन्य बेटे निजी संस्थानों में नौकरी करते हैं। परिवार आर्थिक रूप से सक्षम है, फिर भी बुजुर्ग मां-बाप की अनदेखी करते रहे। वहीं, उपेक्षा और तकलीफ में ज़िंदगी के दिन गुजार रहे हीरालाल ने जब केरल में भीषण बाढ़ की खबर पढ़ी तो अपनी बचत से 70 हजार रुपए प्रशासन को दान कर दिए।

उधर, मामले पर प्रशासन ने कहा है कि बुजुर्गों को उनका कानूनी हक मिलेगा। अधिकारियों ने ऐसी घटनाओं पर चिंता जताई है। साथ ही नौजवानों को नसीहत दी है कि माता-पिता हमारी सबसे बड़ी संपत्ति हैं, इनका सम्मान करें।

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