भोपाल। मध्य प्रदेश में सिंहस्थ कुंभ और सियासत का एक रोचक संयोग रहा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह प्रदेश में सत्ता बदल देता है। पूर्व में भी ऐसा कई बार हुआ जब मुख्यमंत्री ने सिंहस्थ कुंभ करवाया और आश्चर्यजनक रूप से उसकी कुर्सी चली गई। इसे संयोग मात्र कहा जाए या कुछ और, लेकिन मध्य प्रदेश में इसकी खूब चर्चा होती है।
पिछली बार जब अप्रैल 2016 में उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन हुआ तो यह चर्चा फिर शुरू हो गई कि इस बार मध्य प्रदेश में सत्ता बदल सकती है। तब शिवराज सिंह चौहान साधु-संतों की सेवा में जुटे और सिंहस्थ कुंभ के लिए बड़े स्तर पर किए गए इंतजामों पर नजर रखी। बीते छह दशकों में ऐसा देखने में आया है कि सिंहस्थ के बाद मुख्यमंत्री को गद्दी छोड़नी पड़ी। गत 62 वर्षों में पांच बार सिंहस्थ कुंभ हुआ है।
इससे पहले जब 2004 में सिंहस्थ कुंभ हुआ तो उमा भारती मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। इसके कुछ माह बाद ही उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। ऐसा ही संयोग साल 1992 में उपस्थित हुआ। उस समय यहां सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे। उन्होंने सिंहस्थ कुंभ करवाया और उसके बाद अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा और मध्य प्रदेश में सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।
सिंहस्थ का यही संयोग 1980 में देखने को मिला। उस समय भी सुंदर लाल पटवा मुख्यमंत्री थे। तब वे पहली बार मुख्यमंत्री बने थे लेकिन एक महीने बाद ही उनकी कुर्सी जाती रही। इसी तरह मध्य प्रदेश में गोविंद नारायण सिंह की कुर्सी भी सिंहस्थ के बाद चली गई। वे साल 1967 में मुख्यमंत्री बने और अगले साल सिंहस्थ कुंभ करवाया। साल 1969 में गोविंद नारायण को कुर्सी से हटना पड़ा।
इसके अलावा उज्जैन में यह भी कहा जाता है कि यहां जो मुख्यमंत्री रात्रि को विश्राम करता है, उसकी सत्ता चली जाती है। धार्मिक मान्यता है कि यहां के राजा महाकाल हैं। उनकी नगरी में किसी अन्य शासक को विश्राम करने का अधिकार नहीं है। जो भी ऐसा करता है, उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ता है। इसलिए यदि यहां कोई मुख्यमंत्री आता है तो रात्रि विश्राम अन्य स्थान पर ही करता है। उज्जैन के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें कहा गया है कि प्राचीन काल में भी यदि किसी राजा ने यहां रात्रि विश्राम किया तो उसका शासन समाप्त हो गया।
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