नई दिल्ली। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक लोकप्रिय राजनेता के अलावा पत्रकार, लेखक, कुशल संगठनकर्ता और कवि भी हैं। जब वे मंच पर कविता पाठ करते तो उनकी कविताएं खूब तालियां बटोरतीं। अब भी वाजपेयी के प्रशंसक उनकी कविताएं पढ़ते हैं। उनकी कविताओं में जीवन का दर्शन सहज और सामान्य शब्दों में उकेरा गया है। यूं तो ऐसी कई कविताएं हैं जिन पर वाजपेयी के जीवन का प्रभाव दिखाई देता है, लेकिन आज एक कविता सोशल मीडिया पर खूब शेयर की जा रही है। उसका शीर्षक है — ‘मौत से ठन गई’। आज वाजपेयीजी अस्पताल में भर्ती हैं और देशभर में उनके लाखों प्रशंसक यह दुआ कर रहे हैं कि वे इस मुश्किल वक्त को मात दे सेहतमंद होकर अपने घर लौट आएं। पढ़िए उनकी यह कविता।
ठन गई
मौत से ठन गई.
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई
मौत से ठन गई