बीजिंग। चीन में मुसलमानों के साथ सख्ती की खबरें अक्सर मीडिया में आती रहती हैं। अब खबर है कि चीनी सरकार अपनी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए वहां के कई उइगर मुसलमानों को ट्रेनिंग कैंप में भेज रही है। ये विवादित स्थान ट्रांसफॉर्मेशन यानी बदलाव के ट्रेनिंग कैंप कहे जाते हैं। इनमें सैकड़ों उइगर मुसलमानों को भेजा गया है। स्थानीय प्रशासन का मानना है कि यह चीन के प्रति वफादारी सिखाने का व्यापक अभियान है।
इस ट्रेनिंग कैंप की एक तस्वीर भी सोशल मीडिया में आई है। इसमें एक इमारत दिख रही है जिस पर लाल रंग से चीनी भाषा में निर्देश दिए गए हैं। इसके बाद दुनिया के कई हिस्सों में ऐसी पहल का विरोध किया गया है। लोगों ने इसे अमानवीय और इस्लाम के खिलाफ कहा है। वहीं चीन के रुख पर इसका कोई असर नहीं हो रहा। सबसे ज्यादा पाकिस्तान की चुप्पी चौंकाती है, क्योंकि पाकिस्तानी नेता और कई मौलवी यह दावा करते रहते हैं कि चीन उनका सबसे ज्यादा भरोसेमंद दोस्त है, लेकिन किसी राजनेता, सैन्य अधिकारी और मौलवी ने चीन के इस कदम की आलोचना नहीं की।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस पर रिपोर्ट प्रकाशित की है। उसके मुताबिक, चीन ने उइगर मुसलमानों को ‘देशभक्त’ और ‘वफादार’ बनाने के नाम पर ये कैंप शुरू किए हैं। यहां अल्पसंख्यक मुसलमान जबरन लाए जाते हैं। फिर उन्हें यहां कम से कम दो महीने रहना होता है। इस दौरान चीनी भाषा, कानून और रोजगार आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। कई संस्थाएं चीन के इस प्रयास की कड़ी आलोचना कर चुकी हैं। उनका कहना है कि चीनी सरकार ऐसी कोशिशों से उइगर मुसलमानों की सांस्कृतिक पहचान नष्ट करना चाहती है।

न्यूयॉर्क टाइम्स कहता है कि यहां कई घंटों की क्लास लगती है। उसमें प्रशिक्षक मुसलमानों को कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन करना सिखाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कोशिश के जरिए चीन इन्हें कथित तौर पर ‘वफादार’ बनाना चाहता है। उल्लेखनीय है कि चीन में करीब 2.3 करोड़ मुसलमान हैं। इनमें उइगर मुसलमान करीब एक करोड़ हैं। चीन के शिनजियांग प्रांत में काफी मुसलमान हैं। यहां से अक्सर मुसलमानों पर सख्ती की खबरें आती रहती हैं। इस प्रांत में अलगाववाद भी है। यहां कई वर्षों से चीन से अलग होकर मुस्लिम राष्ट्र के निर्माण की मांग की जाती रही है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक शख्स की आपबीती भी प्रकाशित की है। उसका नाम अब्दुसलाम मुहमेत बताया गया है। वह एक अंतिम संस्कार के सिलसिले में कब्रिस्तान गया था। वापसी के वक्त वह कुरान की आयतें पढ़ रहा था। इसके बाद पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया और इस कैंप में भेज दिया। यहां से उसे दो महीने के बाद रिहाई मिली। उसने कहा है कि चीन का यह कदम अनुचित है। इससे कभी चरमपंथ खत्म नहीं किया जा सकता, बल्कि ऐसी कोशिशों से तो लोगों में प्रतिशोध की भावनाएं ज्यादा प्रबल होंगी।
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